कैसे किया हमने भारत का सबसे बड़ा मल्टीलिंगुअल स्टोरीटेलिंग इवेंट
Journey of a thousand miles starts with the first step.
किसी बड़े लेखक और वैज्ञानिक (शायद स्टीफ़न हॉकिंग्स) ने लिखा था कि, ‘अगर किसी किताब में ढेर सारे फ़ॉर्मूले और गणितीय समीकरण हों तो उसकी बिक्री अपने आप कम हो जानी है.’
इसी तरह, कम से कम मेरा मानना तो यही है कि, कंटेंट की शुरुआत अगर किसी क्लीशे लाइन से हो तो उसे पढ़ने वाले लोग, लेखक को पहले ही जज करने लगते हैं और ये सब जानकारी होने के बावज़ूद मुझे अपने कंटेंट की शुरुआत एक कोट से करनी पड़ी, क्यूंकि मजबूरी थी.
मजबूरी इसलिए थी, कि इससे अच्छी तरह से पिछले 3 महीने के भसड़ और पिछले 15 दिनों की हसल को कोई और वाक्यांश नहीं बता सकता था.
वो ‘हसल’ जिसका एक ख़ूबसूरत नाम था: जोश मैराथन.
चिल्ला-चिल्ला के स्कीम बता दे
वी फ़ॉर वेंडेटा. कमाल की मूवी. इसका एक डायलॉग है — ‘विचार अमर होते हैं! बुलेटप्रूफ़!!’ आइडिया देने वाला मर जाए लेकिन अगर आइडिया बाकी लोगों को कम्यूनिकेट कर दिया जाए तो आइडिया नहीं मरता. कोई बॉलीवुड मूवी होती तो, ‘आइडिया’ शब्द को ‘प्रेम’ से बदल दिया जाता और कोट फिर भी कमाल ही रहता. नहीं?
बहरहाल मुद्दे से भटकते नहीं है. और उस आइडिया की बात करते हैं जिसके राउंड एंड राउंड इतना घूम चुके हैं.
ज़ल्दी बोल, पनवेल निकलना है
जोश Talks कुल 9 भाषाओं में कंटेंट तैयार करता है और हर भाषा में हमें बहुत पसंद किया जाता है. टीम में से ही किसी को आइडिया आया कि क्यूं ना कुछ भाषाओं को, अपने कुछ यूट्यूब चैनल्स को एक साथ लाया जाए. जोश Talks की हिस्ट्री में पहली बार, शायद यू-ट्यूब की हिस्ट्री में पहली बार.
आइडिया अच्छा था, लेकिन, इसमें ‘लेकिन’ बहुत थे. सवाल बहुत थे और अच्छी बात ये थी कि सवाल थे क्यूंकि इससे सिद्ध होता था कि हम सीरियस थे. और एक और अच्छी बात थी कि सिर्फ़ सवाल नहीं थे, उनके उत्तर खोजने की ईमानदार कोशिशें भी थीं.
हाँ ये कर लो पहले
आगे बढ़ने से पहले मैं बताना चाहता हूँ कि जहां-जहां मैं ‘टीम’ लिख रहा हूँ, वहां पर टीम का कोई भी सदस्य, कोई भी डिपार्टमेंट हो सकता है. इतने लोग, इतने डिपार्टमेंट इसमें जुड़े थे कि अगर नाम लिए जाएँगे तो, या तो एक अलग ब्लॉग लिखनी पड़ जाएगी या फिर कई आवश्यक नाम और डिपार्टमेंट छूट जाएँगे. प्रोडक्शन से लेकर ब्रांड सलूशन तक और JCN से ब्रांड एंड कम्यूनिकेशन और सोशल मीडिया तक. ये मैराथन अपनी रिलीज़ से पहले ‘रिले रेस’ था — टीम एफ़र्ट. हर कोई किसी न किसी तरह से इस पूरे प्रोजेक्ट से जुड़ा था. वरना सफलता संभव नहीं थी. और ये हर कोई जानता था.
अब आएगा ना मज़ा बीड़ू
तो एक तरफ़, टीम के कुछ सदस्य, कुछ डिपार्टमेंट सवालों के उत्तर खोजने में लगे थे — ‘कब कैसे क्यूं कहां’ जैसे महत्वपूर्ण सवाल और ‘अगर, लेकिन, काश’ जैसे कुछ और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण और कई मायनों में दार्शनिक सवाल —
मूलभूत सवाल जैसे: इसे कैसे करना है? कितनी वीडियोज़ आएँगी? प्रमोशन कैसे करेंगे? डॉक्यूमेंटेशन कैसे करेंगे?
कुछ मुश्किल सवाल जैसे: हमारे दर्शक इसे कैसे लेंगे?
सबके उत्तर ढूँढे गए. कुछ के डिस्कस करके और बाक़ियों के…
…बार बार डिस्कस करके. नाम क्या होगा से लेकर, कंटेंट क्या होगा तक में या तो आम सहमति थी या डेमोक्रेसी.
वहीं दूसरी तरफ- बाकी लोग चीज़ों को एग्ज़िक्यूट करने में लगे थे. हमारे पास कोई ब्लूप्रिंट नहीं था. कोई स्केलेटन नहीं था. सफलता-असफलता का कोई बैंचमार्क नहीं था. हमारा कंप्टीशन भी ख़ुद हमसे था.
वक्त बदल गए जज़्बात बदल गए
तो यूं अंततः मैराथन का जो स्वरूप निकला उसका सार कुछ यूं था -
- ये इवेंट हर साल किया जाएगा
- इसमें सभी 9 भाषाओं के चैनल्स शामिल होंगे
- इवेंट का नाम ‘जोश मैराथन’ होगा
- हर साल इसकी कोई नई थीम होगी — 2022 में, यानी जोश मैराथन के पहले संस्करण की थीम ‘आज़ादी/फ़्रीडम’ होगी
- 2022 में 1 अगस्त से लेकर 15 अगस्त तक कहानियां रिलीज़ होंगी
- हर पोस्ट और टॉक की कलर थीम बिल्कुल एक जैसी होगी.
- हर एक पोस्ट और टॉक उसके शेड्यूल टाइम पर ही रिलीज़ होगा.
और जोश मैराथन भारत का सबसे बड़ा मल्टीलिंगुअल स्टोरीटेलिंग इवेंट होगा.
अच्छी बात थी कि टीम्स के पास ‘टाइम’ था, लेकिन उससे अच्छी बात थी कि उनके पास ‘टाइमलाइन’ थी. हम बहुत-सी ग़लतियाँ कर रहे थे, लेकिन हमारा मानना था कि नेपथ्य में जितनी भी ग़लतियाँ कर लो चलेंगी, स्टेज में ग़लतियाँ घातक हो सकती हैं. यूं पूरा प्रोजेक्ट कई बार ड्रॉइंग बोर्ड पर वापस गया. हर बार नई टीम जुड़ती तो अपने साथ धांसू आइडिया लेकर आती. RBI की MPC की तरह ही हमारी उच्चस्तरीय मीटिंग्स होतीं. उनकी तो क्वाटर्रली होती हैं, हमारी रोज़-रोज़ होतीं — कितनी विडियो जाएँगी, इसको लेकर मीटिंग. क्या कंटेंट जाएगा इसको लेकर मीटिंग. पिछली मीटिंग में क्या डिस्कस हुआ इसको लेकर मीटिंग. अगली मीटिंग का एजेंडा क्या होगा इसको लेकर मीटिंग. और इसलिए हमारी टीम में दो ‘नॉन-लिविंग’ एलिमेंट्स सबसे महत्वपूर्ण हो चले थे: गूगल मीट और गूगल स्प्रेडशीट. और तब हमने जाना कि दुनिया की आधी दिक़्क़तें ‘मिस कम्यूनिकेशन’ के चलते हैं. और बची हुई आधी पर ध्यान ही ना जाएगा, अगर कम्यूनिकेशन इतने प्रोडक्टिव हों जितने हमारे हो रहे थे.
बेशक हमने कई डेडलाइंस मिस कीं. लेकिन सिर्फ़ इंटर्नली, नेपथ्य में. स्टेज में हम एयरलाइंस और मुंबई के डब्बेवाला की तरह ‘सिक्स सिग्मा’ लेवल पर काम कर रहे थे. कई बार हम मिनटों के हिसाब से डेडलाइन चूकने से चूके. वो गुलज़ार कहते हैं ना, ‘वो देर से पहुंचा, पर समय पर पहुंचा.’ मुझे एक इनसीडेंट याद आता है…
मेरेको तो ऐसे धक-धक हो रेला है
25 जुलाई, 2022 की शाम. और यहां ‘शाम’ का कोनोटेशन ‘सुहानी’ क़तई नहीं है. मैराथन का ट्रेलर जो 6:30 पर जाना था, (कुल 09 चैनल्स पर. एक साथ. सारे सोशल मीडिया अकाउंट्स पर भी) टीम 06:20 तक भी उसका फ़ाइनल ड्राफ़्ट रेंडर कर रही थी. एक तरफ़ पूरा जोश टॉक और उसके दोनों ऑफ़िस (बंगलुरु, गुरुग्राम) की टीम्स बाजे-गाजे के साथ बड़ी स्क्रीन पर ट्रेलर के आने का इंतज़ार कर रही थी, दूसरी तरफ़ ट्रेलर, ‘रेंडर’ हो रहा था. शादी थी, मुहूर्त निकला जा रहा था, दुल्हन सज रही थी. शादी, रोज़-रोज़ थोड़े न होती है.
10, 09, 08, 07… समय की तेज़ी ‘जर्नल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी’ का चौथा डायमेंशन हो गई थी. लेकिन ऑन टाइम के साथ-साथ पर्फ़ेक्शन भी ज़रूरी था. स्मार्ट वॉच में दो चीज़ें दिख रही थीं, गुजरता हुआ समय और बढ़ता हुआ स्ट्रेस लेवल. लेकिन समय देखने का समय किसी के पास नहीं था. किसी ‘स्पोर्ट्स’ विधा की मूवी की तरह ठीक समय पर ट्रेलर रिलीज़ हुआ. सन्नाटे के बदले पीछे बैकग्राउंड म्यूज़िक चलने लगा. और रह-रह कर याद आने लगा, लगान का मीम: हम जीत गए!
अच्छी बात ये थी कि हम जीत गए, लेकिन उससे अच्छी बात ये थी कि हमने किसी को हराया नहीं था. ‘हम सब’ जीत गए.
देख रहा है ना बिनोद
ये हमारी पहली जीत थी. लेकिन अभी तक की एकमात्र जीत थी. अब समय क़रीब आ रहा था, और तब हमने जाना कि ईश्वर ने दुनिया सात दिन में नहीं सातवें दिन में बनाई होगी. बाकी छः दिन तो प्लानिंग में निकले थे शायद. हर टीम दूसरी टीम के काम को लेकर उत्साहित और अपने काम को लेकर टेंस थी.
- ब्रांड एंड कम्यूनिकेशन एक्साइटेड थी कि 1 अगस्त से अगले 15 दिनों में 75 टॉक्स जाएँगी, लेकिन टेंस थी 31 जुलाई वाले ऑफ़लाइन इवेंट को लेकर.
- सोशल मीडिया टीम एक्साइटेड थी कि 31 जुलाई वाले ऑफ़लाइन इवेंट में कमाल के स्पीकर और हमारे व्यूवर्स से लाइव मिलने का मौक़ा मिलेगा, लॉक डाउन के बाद पहली बार कुछ ‘मेला’ सरीखा इवेंट होगा. लेकिन टेंस थी उन रील्स को लेकर जिन्हें इन 15 दिनों के दौरान जानी थीं.
- प्रोडक्शन टीम एक्साइटेड थी इन रील्स का पर्फ़र्मेंस और इनका कंटेंट जानने के वास्ते, लेकिन ट्रेलर के बाद 75 टॉक्स की एडीटिंग को लेकर टेंस थी. सुबह 10 बजे आती और रात 10 बजे जाती.
- कंटेंट टीम तो लगभग हर बात के लिए एक्साइटेड थी, और दूसरी तरफ हर छोटी-छोटी बात के लिए टेंस.
ऐसा कोई कहता तो नहीं है पर, मैं कह रहा हूं, ‘अगर काम दिल से किया जाए तो मंगल ही होता है.
1 अगस्त से जब टॉक्स रिलीज़ और कम्युनिटी पोस्ट रिलीज़ होने लगा, तो ‘वर्ल्ड कप’ जीतने वाली फीलिंग आ गई. वो होता है ना, खुद पर एक अनोखा गर्व महसूस होना. जोश मैराथन वाकई में भारत का सबसे बड़ा मल्टीलिंगुअल स्टोरीटेलिंग इवेंट बन गया ‒
- कुल 75 वीडियो (टॉक्स) हमारे 9 यू-ट्यूब चैनल्स पर रिलीज़ हुईं
- 75 कहानियों के लिए हमने 9 शहरों में 48 दिन में 371 वीडियो शूट किए.
- हर टॉक का क्रॉस प्रमोशन बाकी सोशल हैंडल्स पर हुआ
- टोटल 650 यू-ट्यूब कम्युनिटी पोस्ट किए गए
- सभी सोशल मीडिया चैनल्स पर हमने हर दिन 1.5 मिलियन से ज़ादा व्यूज़ किए
जो बात मैंने शुरूआत में कही थी, ‘Journey of a thousand miles starts with the first step’ वो कहानी जो एक आडिया से शुरू हुई थी, अपनी पहली मंज़िल पर पहुंच गई है.
तो, जैसा कि पहली मंज़िल पर पहुंचने के बाद मुसाफ़िर थोड़ा आराम कर लेता है. वैसे ही, हमने भी ऑफिस की तरफ से मिली ‘रिचार्ज लीव्स’ में थोड़ा आराम किया और अब हम तैयार हैं दूसरी मंज़िल पर जाने के लिए.
आख़िर मीलों लंबे मैराथन की शुरुआत पहले कदम से ही होती है. और अगली बार थोड़ा और जोश के साथ!