उन नन्हे-नन्हे कदमों की बात कुछ और थी
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Aug 13, 2023
उन नन्हे-नन्हे कदमों की बात कुछ और थी
वह साफ आसमानों वाली रात कुछ और थी
ना घरों की सरहदें थी ना था कोई गैर
सारा गांव अपना था वह जायदाद कुछ और थी
जब भी गुम जाता था खिलौना कोई अजीज
घर-भर में उसकी तहकीकात कुछ और थी
कुछ और ही थे वह नजारे और ही था वह जहां
खुश थे हम जिसमें वह कायनात कुछ और थी
अब तो यार भी रखते हैं गिले-शिकवे हमसे
उन नन्हे-नन्हे दोस्तों से मुलाकात कुछ और थी
काश रह पाता जहां यूं ही खूबसूरत
पर शायद ख्वाहिश-ए-हालात कुछ और थी