आदम और हव्वा
Jan 17, 2018 · 1 min read

एक जान तू है,
एक साँस मैं हूँ ,
एक तार्रुफ़ तू है,
एक पहचान मैं हूँ ,
एक सोच तू है,
एक ख्याल मैं हूँ ,
एक हर्फ़ तू है ,
एक लफ्ज़ मैं हूँ ,
एक घर तू है ,
एक सराय मैं हूँ ,
एक आइना तू है
एक काँच मैं हूँ ,
एक पैराहन तू है,
एक कफ़न मैं हूँ ,
एक शौक तू है ,
एक ख़्वाब मैं हूँ ,
एक अँगार तू है ,
चिंगारी मैं हूँ ,
एक सफ़ा तू है ,
एक किताब मैं हूँ ,
तू तराशता है अपना ख़ुदा ,
मुझे अपना रब भी नसीब नहीं .
गर हैं हम यकसान ,
तो तेरे कायदे दोहरे क्यों हैं ?
ये आदम और हव्वा की दास्तान क्यों है ?
नहीं मंज़ूर मुझे किसी हाल में ये.
अपना एक जहाँ बसाऊँगी मैं,
तब आना तुम वहाँ ,
तुमको भी बुलाऊँगी मैं .
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