कौन हो तुम?

(१)
कौन हो तुम?
कोई सुंदर कविता हो, या कोई खूबसूरत छंद
हो कोई ख्वाब, या हो मुस्कान मंद-मंद
आखिर कौन हो तुम?
तुम्हारी खूबसूरत आंखें, तुम्हारी सुरीली आवाज
सुनता हूं इनको, कानों में बसते हैं साज
आखिर कौन हो तुम?
तुम्हारी बातें तुम्हारे सपने, हो भले दूर पर लगते हो अपनें
अपने आखिर कौन हो तुम?
ना मिलकर भी मिलना, मिल कर भी ना मिलना
एक रहस्य की अनुभूति कराते
आखिर कौन हो तुम?
तुम हो एक अनुत्तरित प्रश्न, या कोई गूढ़ विचार
पर करते हो दिल में तुम प्यार का संचार
आखिर कौन हो तुम?
पहचान गया हूं तुम्हें ,
तुम प्रकृति की अद्भुत, सुंदर, रहस्यात्मक अभिव्यक्ति हो
मिलन-बिछुड़न,अलगाव-दुराव से परे, तुम एक शाश्वत सत्य हो।।
(२)
हां मैं शाश्वत सत्य हूँ,
नव नील नभ में पूर्ण शब्द परिचायक
तमलीन जगत में अमर कथा का नायक
भौतिकता के सागर में, मैं आदि शब्द परिचायक
अंतरतम के पथ पर शूल हूं, नव किसलय का फूल हूँ
हाँ मैं शाश्वत सत्य हूँ।
मैं निराकार मैं निर्विकार
मैं आदि जगत का अकथ सार
मैं परब्रम्ह, मैं आदिपुंज
मैं अनादि शून्य का पूर्ण विहंग
हाँ मैं शाश्वत सत्य हूँ।।
(संवाद के शैली में लिखी इस कविता का प्रथम भाग मैंने और द्वितीय भाग मेरे मित्र रोहित यादव ने लिखी है)