खुद को पाया है

Vineeta Tewari
my tukbandi
Published in
1 min readAug 12, 2020

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दंश शूल का बड़ा सघन था
घायल पूरा अंतर्मन था,
पीड़ित तन अवशोषित मन पर
भारी नश्तर चुभा हुआ था,
कही-अनकही बातें लेकर
भूली बिसरी यादें लेकर,
कुछ भरमाया कुछ सकुचाया
मेरा मन बस डोल रहा था,
चिर बन्धन कह कर ही तूने
अपना साथी मुझे चुना था,
सारे बन्धन तोड़ जहाँ से
मैनें भी बस तुझे गुना था,
अब कैसा यह सन्निपात है?
न न यह तो वज्रपात है !
मेरा क्या है दोष बता दे
क्यों रूठी है यही जता दे,
करके मुझको निपट अकेला
क्यों तूने यह बंधन खोला,
काश ! अनकही पीड़ा मेरी
मैं तुझको बतला पाता,
मेरे चक्षुवृन्द के आगे
सब कुछ है धुंधला जाता,
अब ना तू मेरी स्वप्न सुंदरी
ना तू मेरी माया है,
जिसको तूने दंश दिया है
वह बस मेरा साया है,
आज युगो के बाद असल में
मैंने खुद को पाया है |

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