गाँवों के लड़के

1.गाँवों के लड़के
गाँवों के लड़के निर्धारित नही करते,
रुचियों से अपना भविष्य,
बल्कि भविष्य निर्धारित करता है रुचियाँ।
चलते जाते है, अंधे ही, किसी भी रास्ते पर,
माता-पिता के दबाव में, अवसरों के अभाव में,
बनाने एक मुकाम, जैसे घिसती रस्सियां,
बनाया करती हैं कुओं पे अपना निसान।।
2.मुक्तिबोध के लिए
कभी-कभी जब आप अकेले होते हैं,
तो सोचते हैं कि, काश कोई ऐसा तो होता,
जिससे हम साझा कर सकते,
अपने दिल की बातें, अपनी दिमाग की बातें।
खत्म करते जुबान का कारावास,
जिससे लफ़्ज़े भरती एक नई उड़ान,
विस्तृत होती हमारी अभिव्यक्ति,
टूटते मठ और गढ़ सब,
जैसा कि कभी मुक्तिबोध ने कहा था।।