
ज़िन्दगी
Jan 12, 2018 · 1 min read
सूखी, उजड़ी, बेरंग ज़िन्दगी,
लड़खड़ाती, अनमनी सी, मगर चलती है,
क्यूँ नहीं थमती है? क्यूँ नहीं सूख के झड़ जाती है?
क्यूँ नहीं धूल में जा मिलती है ये बे-सबब ज़िन्दगी?
ख़ाली बोतल सी पड़ी फ़र्श पे डोलती है, मेरे घर में जगह घेरती है ज़िन्दगी,
नाकाम, बेबुनियाद, एक गिरिफ्तारी का नाम,
अज़ीज़ बनने का दावा करती, जलती रही मुझसे ज़िन्दगी,
सब ले गयी मुझसे सौदे में, होश आया तो लूट के गयी ज़िन्दगी
लफ्ज़ छीन ले गयी और कई सवाल दे गयी मुझको ज़िन्दगी।