Hindi Poem: मैं ज़िंदा हूँ

Ritu Chaudhry
my tukbandi
Published in
1 min readOct 5, 2018

रोज़ाना हम मिलते थे

कितनी बातें करते थे

तू इतने वादे करता था

हर वादे से मुकरता था

तेरी इस आदत पर हम

दोनों कितना हँसते थे

एक मज़ाक़ लगता था

ख़ुद को महफ़ूज़ समझती थी

आलम ए बेफ़िक्री थी

आज सब जान गई

रग रग पहचान गई

चहरे पे जो चहरे थे

अब सब बेनक़ाब हैं

जूठ बे हिसाब हैं

बस ग़म ही ग़म है

आँखें मेरी नम है

मेरा भरोसा टूटा है

इंसानियत का जज़्बा

शायद झूठा है

यादें केवल सच्ची हैं

आज भले मैं तनहा हूँ

पर्दा फ़ाश हुआ शुक्र है

पता है तुझे मैं ज़िंदा हूँ

नहीं मैं शर्मिंदा हूँ।

Image : Unsplash

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