सौन्दर्य
Published in
1 min readAug 12, 2020
शैल के शोभित शिखर से
उतरी संध्या सुंदरी सी,
नील नभ पर फैलती है
तारों की एक फुलझड़ी सी,
शुभ्र ज्योति से सुसज्जित
चांदनी है मोहिनी सी,
खिल गई है शांत जल में
कुमुदिनी की एक लड़ी सी,
मत्स्य मचली है महासागर में
मानो जलपरी सी,
चल रही है चार दिग
चंचल हवाएं मनचली सी,
छेड़ दी निस्तब्ध वन में
एक सुरीली रागिनी सी,
बेधती है मौन का अंतस
तुम्हारी बांसुरी सी,
प्राण मन में बस रही है
यह प्रकृति माधुरी सी |