स्त्री मन की अभिलाषा

Vineeta Tewari
my tukbandi
Published in
1 min readJul 28, 2020

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सोच-समझकर बहुत जिया है
जतन यतनभी खूब किया है,
इस उजलीचादर पर मैंने
एक दाग़भी भी नहीं दिया है,
घर संसार संभाला है
प्रतिपल प्रतिक्षण पाला है,
जिसको जितना जो चाहिए था
उतना मुझसे पाया है,
लेने का तो प्रश्न कहां है
बस देना ही सीखा है,
सबका जीवन मधुर बनाया
पर अपना ही फीका है,
अब मुझको उड़ जाने दो
नील गगन में गाने दो,
न आऊंगी वापिस अब मैं
जतन तुम चाहे लाख करो,
हे ईश्वर मेरे,मेरी यह
पहली गलती मांफ करो |

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