Hindi Story: हिज्र की ज़ुल्फ़ें

उसकी बाहों ने मुझे आज़ाद किया ही था कि तन्हाई ने अपनी घनेरी ज़ुल्फों का साया मेरे सर कर दिया..
मैंने काली ज़ुल्फों की शान में न जाने कितने क़सीदे लिख डाले थे
मैं ज़माने से घबरा के जिनमें छुपा
ऐसी ज़ुल्फ़ों का साया सलामत रहे ।
मगर न जाने इस हिज्र की ज़ुल्फ़ें इतनी घनघोर सायादार होने के बावुजूद मुझे रास नहीं आ रही थीं
वही उसकी नाज़ुक ओ साफ शफ़्फ़ाफ़ बाहें और काली घनेरी ज़ुल्फ़ें रह रह के दिल ए नातवाँ पे हश्र बरपा कर रहीथीं..
मैं तो ज़ंजीर ए वफ़ा में हूँ मुक़य्यिद वरना
बांध कर खुद ही तेरे पास ले आऊँ ख़ुद को
एक महीना जैसे तैसे गुज़ार ही दिया हिज्र के सीने पे सर रख कर ।
जब अना से ज़रा बाहर आने की फुरसत हाथ लगी तो फिर उसी जानिब उसी राह पे चलने की हिम्मत ने वापसयलगार किया ।
इतनी हिम्मत दिल ए नातवाँ में कहां
आप यादों के लश्कर न भेजा करें ।
इस एक महीने में अगर वो डिलीट न कर दिया करती तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि उसका फ़ोन मेरे मैसेजेस की लगातार आमद से हैंग हो गया होता..
ताज्जुब तो उस सख्तदिल के दिल पे होता है जो कभी मेरे नाम पे धड़कता था आज वही मेरे होने न होने से किसी भी तरह के एहसासात से एक दम ख़ाली हो चुका था जैसे कि आज कल मेरी रातें बिल्कुल ख़ाली हैं नींद से, चैनसे।
खैर,
उस दिन मेरी ऑफिस की टाइमिंग सुबह की थी सो काफी देर ग़ौर करने और दिल ओ दिमाग से लड़ने के बाद उसे फ़ोन मिलाने का फैसला कर ही लिया
मिस्ले लश्कर है तेरी यादों ने हमला बोला
मैं तन ए तन्हा भला कैसे बचाऊं खुद को
तीन मर्तबा मुकम्मल रिंग जाने के बावुजूद उसने कॉल रिसीव नहीं की ।
इधर मेरी रातों की नींद हराम कर…वो ज़ालिम सुबह तक नींद की सहेली बन बैठी थी ।
आंख खुलते ही उसने कॉल बैक की …..
वही खनकती सी आवाज़ मेरे कानों में हज़ारों बर्फियों की मिठास घोल देने की महारत लिए हुये..
वो: हैलो !
हैलो !
बोलना नहीं है क्या ?
कुछ कहना है तो बोलो
क्यों कॉल की मैंने मना किया था न ?
मैं: हाँ, तुम्हारी एक चीज़ है मेरे पास उसे वापस करना है ….
वो: नहीं चाहिए मुझे कुछ वापस … नदी में फेंक दो, आग लगा दो, बस मुझे कॉल मत करो
मैं: ये मुमकिन नहीं , उसे वापस लेना ही होगा तुम्हें , बोलो कब आऊं ?
वो: ओके ठीक है , एक बजे आ जाना कॉलेज के बाहर
इतना कह के उसने कॉल रख दी और मैं धड़कते दिल को समझाता.. बहलाता.. फुसलाता.. उस से मिलने कीप्लानिंग में लग गया।
दोपर के 2 बज रहे थे, मैं उसके कॉलेज के गेट पे था
15 मिनट में वो मेरे सामने थी देखते ही दिल बेक़ाबू बेचैन एक छोटे बच्चे की तरह ज़िद पे अड़ गया कि चाहे जैसेइसे वापस अपना बनाना है दोबारा …
उसको देखा तो अक़्ल ने फ़ौरन
होश मिस्ले कबाब.. फूंक दिए :)
और उस ज़ालिम पर मेरे सामने आ जाने के बाद भी कोई असर नहीं नज़र आ रहा था
मानो….
“मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं” वाला हाल।
सपाट सा चेहरा बना के दो टूक सवाल
वो: लाओ ! क्या देना था ?
मैं: बाइक पे बैठो वो चीज़ यहां नही है..
काफ़ी इसरार के बाद चलने को राज़ी हुई।
गोमती नदी के किनारे मैंने बाइक रोकी और कहा कि “मैं ही हूँ तुम्हारी वो चीज़ जो तुम्हे वापस लेना है प्लीज मुझेवापस ले लो अपनी ज़िंदगी में”
उसने मेरी जानिब देखे बगैर कहा
“ये सब सिर्फ़ फिल्मों में अच्छा लगता है …यही बात करनी थी ? ओके
यही बात करनी थी ? ओके अब मुझे घर छोड़ो ।”
मैं अपनी भीगी आंखे लिए उसको एकटक देखता रह गया… ये वो तो नहीं जिसपे जाँ निछावर करता था मैं..
वो तो बहुत मुहब्बत से लबरेज़ हस्ती थी
खैर! मैंने बिलकुल ख़ामोशी के साथ बाइक स्टार्ट की.. उसे बिठाया और नदी के बांध पे तारकोल की उसचमचमाती सड़क पर अपनी बाइक ला दी
मैंने उस से सवाल किया
“तुम्हें तैरना आता है ?”
वो: क्यों ?
मैं: तुमने ही कहा था उस चीज़ को नदी में फेंक दो ! सो मैं बाइक और तुम समेत खुद को नदी में फेंक रहा हूँ”
इतना कह कर मैंने बाइक नदी की ओर मोड़ दी,
मेरी इस हरकत पे उस की चीखें निकल गईं ।
पर मैंने बाइक न रोकी तोे नाचाहते हुए भी उसे कहना पड़ा कि वो मेरी ज़िन्दगी में दुबारा आने को राज़ी है।
मुझे अब दोबारा नहीं करेगी तन्हाई के हवाले ।
तब जा के मैंने उसे घर छोड़ा।
मगर ये क्या कि वो घर जा के फिर बदल गयी.. कहने लगी “वो तो तुम्हारी ज़बरदस्ती थी तो मजबूरन मुझे हाँकरना पड़ा पर अब सुन लो I don’t wana come back into YOUR life again … just go to hell !!
उस के इस अंदाज ए बयां ने मानो मुझे सैंकड़ो मन मिट्टी की अंदर दबा दिया हो,
मेरे आसमानी पंख को आग लगा दी हो ।
अना के शैतानों ने फिर अपने अहाते में ले लिया,
मुझे ज़मीर ने हज़ार बार एक नन्हे बच्चे की तरह समझाते हुए अहमद फ़राज़ का ये शेर पढ़ा…
“और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा”
‘Shadab’