
तुम्हारी बात
Apr 16, 2019 · 1 min read
बात तुमसे शुरू हुयी थी
तुम पे ही रुकी है अब तक
इतनी हिचकिचाहटों के बीच भी कोई चिंगारी बची है अब तक
दो हाथों के बीच, दो होंठों के बीच,
दो जिस्मों के बीच कुछ जीता है
दो दिल जुड़े हैं अब भी, इनके तारों को कोई खींचता है
तेरा कहना कि बुझ चुका है ये रिश्ता…..
मेरे चेहरे पे आज भी तेरे चेहरे की छाप क्यों है?
तेरे अलमारी के खानों में आज भी मेरे ख़तों के पुर्ज़े क्यों है?
ये रिश्ता पूरा है, अधूरा नहीं,
न मैं तोड़ पायी हूँ न तू निकाल पाया है दिल से
गये साल नज़र लगी थी किसी की
सुनते हैं कि अच्छा वख्त अब आया है….