लालू यादव : एक नेता से मसीहा तक का सफर

Satyampandey
Nukkad Corner
Published in
6 min readMar 15, 2021

अभी लालू यादव अपनी बीमारी के कारण एम्स, दिल्ली में भर्ती हैं। वे रांची उच्चन्यायालय से चारा घोटाले के केस में सजायाफ्ता हैं। इसके बावजूद वे हमेशा समाचार का मुख्य बिंदु बने रहते है। उनकी बेल को लेकर हमेशा समाचार आते रहता है। कभी अपने दो पुत्र, तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव के कारण भी न्यूज में आते रहते है। अभी हाल ही में लालू यादव ने अपने बड़े पुत्र तेजप्रताप को दिल्ली बुलाया था। जिसके बाद बिहार का राजनीतिक पारा चढ़ गया था।

Source — DailyO

आज लालू यादव भले ही अपने भ्रष्टाचार के कारण जेल में हैं लेकिन कभी बिहार के लोगों के लिए मसीहा थे। आज भी पिछड़ी जातियों के लिए एक मसीहा ही है। किसी भी इंसान के लिए एक आम आदमी से मसीहा बनने का सफर आसान नहीं होता है। एक गरीब परिवार का बेटा जो बिहार की राजनीति में बिना लाव-लश्कर के बिहार का मुख्यमंत्री बन जाता है। उसके बाद वह लोगों के बीच मसीहा घोषित हो जाता है।

लालू यादव एक नेता है। इसमें किसी को अतिश्योकति नहीं होनी चाहिए। लालू यादव के पूराने साथी नरेंद्र सिंह कहते है, लालू यादव लोगों का ध्यान बहुत आसानी से खींच सकते थे। उनका बोलने का विशेष अंदाज और तमाशा करने की योग्यता हमारा काम आसान कर सकती थी। एक बार हमें किसी सभा के बारे में घोषणा करनी थी और हमारे पास समय का बहुत अभाव था। मुझे याद है, वे कॉलेज के गलियारे की रेलिंग पर चढ़ गए और अपना गमछा हिला-हिलाकर कुछ ही मिनटों में सैकड़ों छात्रों को इकट्ठा कर लिया। वे एक अच्छे ढोलकिया थे। लालू यादव किसी भी आनुशासन के पाबंद नहीं थे। कहीं बैठ जाना, कहीं खाना खा लेना, कहीं रुक जाना। शायद यहीं चीजें उन्हें एक नेता बनाती है। जो लोगों के बीच रहने में से उन्हें हासिल होती है।

Source — Enewsroom

लालू यादव का मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी दिलचस्प हैं। वर्ष 1989 में कर्पूरी ठाकुर के देहांत के बाद लालू यादव के पास विपक्ष का नेता बनने का शानदार मौका था। उस मौके को वह हर हाल में भंजाना चाहते थे। वी.पी.सिंह और देवीलाल के सानिध्य में रहने का उन्हें का फल मिला। लालू यादव बिहार विधानसभा के विपक्ष के नेता बन गए। अब उन्हें बिहार में होने वाले चुनाव की तरफ नजर थी। लोकसभा 1989 का चुनाव बिहार विधानसभा चुनाव के 4 माह पूर्व हुआ था। लालू यादव में इतना धैर्य नहीं था कि वे पटना में रहकर सब्र करें। उन्होंने बिहार विधानसभा से विपक्ष के नेता से इस्तीफा दे दिया। लोकसभा जाने के लिए छपरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए खड़ा हो गए। इससे वे वी.पी.सिंह और देवीलाल के करीब भी हो जाते लेकिन वे राजनीति के पक्के गुण सीख चुके थे। राजनीति में कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। लालू यादव इस गुण बात को समझ गए थे।

जब बिहार में जनता दल ने अपने बूते 324 सीटों में से 132 हासिल की थी। वी.पी. सिंह, जो प्रधानमंत्री बन गए थे, लेकिन लालू यादव से किया अपना वादा भूल गए थे। उन्हें बिहार में कोई दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। वी.पी. सिंह ने रामसुंदर दास को बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए चुना था। इस कार्य के लिए उन्होंने चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह को भेजा। अजीत सिंह राजनीति में अभी नौसिखिए थे। वी.पी.सिंह ने यह जिम्मेदारी सिर्फ उनपर नहीं छोड़ी बल्कि रामसुंदर दास की टीम मजबूत करने के लिए जॉर्ज फर्नांडिस और सुरेंद्र मोहन को पटना भेजा। इतना सब होने के बाद लालू यादव चुप कैसे बैठ सकते थे। उन्होंने चंद्रशेखर से मदद मांगी। चंद्रशेखर वी.पी.सिंह को खासा पसंद नहीं करते थे। लालू यादव ने इसका फायदा उठाया। जिस दिन नेता के चुनाव के लिए बैठक थी, वहां अचानक दो के बदले तीन दावेदार प्रकट हुए। वी.पी. सिंह के चहेते रामसुदंर दास, चंद्रशेखर ने जिस उम्मीदवार को वोट कांटने के लिए खड़ा किया था, रघुनाथ झा और तीसरे दावेदार थे — खुद लालू प्रसाद यादव। इस दावेदारी में लालू यादव बाजी मार ले गए।

Source — Patrika

आखिरकार 10 मार्च 1990 को लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बन गए।यहां से शुरू होता है लालू यादव का मसीहा बनने की राह। लालू यादव बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने शपथ ग्रहण समारोह को औपनिवेशिक युग के राजभवन के दायरे से बाहर लाकर सार्वजनिक मैदान में आयोजित करने का निर्णय लिया था। जो बेहद लोकप्रिय साबित हुआ था। गांधी मैदान में हजारों लोग एकत्र हो गए। वह शपथ ग्रहण किसी औपचारिक समारोह की तरह बिल्कुल नहीं था। वह एक विशाल जश्न की तरह था, एक उद्दाम मेले की तरह। उत्साहित भीड़ चीख रही थी, चिल्ला रही थी, धक्का-मुक्की कर रही थी, नारे लगा रही थी, ‘जनता दल जिंदाबाद! लालू यादव जिंदाबाद! जय प्रकाश नारायण अमर रहें!’

लालू यादव ने 10 मार्च, 1990 को शपथ ग्रहण समारोह में एक अलग बिहार बनाने का वादा किया। वे बिहार को नरक में गिरने से रोक लेंगे। वे बिहार को गड्ढे से खींच लाएँगे। ‘‘अब कोई अत्याचार नहीं होगा, अब कोई जुल्म नहीं होगा, अब कोई भ्रष्टाचार नहीं होगा, अब कोई बेईमानी नहीं होगी, यह कसम हम खाए हैं। अब असल लोकतंत्र बनाना है, लोगों का लोकतंत्र।’’ उन्होंने पदभार ग्रहण करने के बाद एक सभा में कहा, ‘‘नया राज, लोक राज बनाना है। गांधी और जय प्रकाश के सपनों का बिहार बनाना है। विश्वनाथ प्रताप सिंह के सिद्धांतों पर चलकर एक नए बिहार का निर्माण करना है।’’

बिहार के किसी मुख्यमंत्री ने 1 अणे मार्ग में स्थित, मुख्यमंत्री आवास को छोड़कर सरकार द्वारा नियोजित चपरासी के दो कमरे के मकान से कभी शासन नहीं किया था। बिहार के किसी मुख्यमंत्री ने कभी एक पेड़ के नीचे सभा नहीं की थी। बिहार के किसी मुख्यमंत्री ने गाँव की चौपाल के तरीके से, खुले आसमान के नीचे सीमेंट के मंच पर मंत्रिमंडल की बैठक कभी आयोजित नहीं की थी। बिहार के किसी मुख्यमंत्री ने राज्य के ऊँचे और असरदार अधिकारियों को पटना पशु चिकित्सा महाविद्यालय परिसर की सड़कों पर तलब करके उनकी बर्खास्तगी को सार्वजनि तौर पर नहीं किया था। बिहार के किसी मुख्यमंत्री ने एक हवलदार की तरह शराब की दुकानों पर छापे मारकर मौके पर ही उनके लाइसेंस रद्द नहीं किए थे। बिहार का कोई मुख्यमंत्री बुखार से पीडि़त अपने बेटे के इलाज के लिए पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल की लाइन में जनसाधारण के साथ खड़ा नहीं हुआ था। बिहार के किसी मुख्यमंत्री ने अपने पूर्ववर्तियों की शृंखला द्वारा स्थापित शैली और संरचना का इतनी तेजी से और उनके पास हर बात का एक ही जवाब था, ‘‘हम चीफ मिनिस्टर हैं, हम सब जानते हैं। जैसा हम कहते हैं, वैसा कीजिए।’’

Source — The Indian Express

लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा ने लालू यादव को लोगों को राजनीति के फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया। लालू यादव ने 22 अक्तूबर, 1990 की रात आपदा प्रबंधन दल के दो सदस्यों राज कुमार सिंह(वर्तमान में सांसद और केंद्र में मंत्री है), जो उस समय बिहार सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी थे और रामेश्वर ओराँव, जो बिहार पुलिस के उप-महानिरीक्षक थे, को आडवाणी के राम रथयात्रा का व्यक्तिगत रूप से निर्देश देकर समस्तीपुर रवाना कर दिया। उन्हें निर्देश दिया कि ‘‘आडवाणी को कम-से-कम उपद्रव के साथ गिरफ्तार करके हमें रिपोर्ट करिए।’’ अगले दिन ही सुबह आडवाणी की रथयात्रा समस्तीपुर में रोक ली गई और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया।

इस घटना के बाद लालू यादव ने रातों रात राष्ट्रीय सुर्खियों में छा गए। वे फौरन ही देश भर के मुसलमानों और वामपंथी उदारवादी बुद्धिजीवियों के चहेते बन गए। साथ ही अल्पसंख्यकों और दलितों के वीर उद्धारक भी बन गए।

लालू यादव पिछड़ी जातियां और अल्पसंख्यक वर्ग के चहते बन गए। उनके बात करने का अंदाज लोगों को अपना-सा लगता था। जिससे लोग उन्हें अपना मसीहा मान बैठे।

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