आँचल का छोर
Published in
Sep 24, 2023
मेरी नज्मों में छुपे बैठे हो कब से
रात के साये में लिपटे हुए से
छुपा छुपी के इस खेल में तलाशती रहती हूँ मैं
कभी तुम्हे, कभी अपने आँचल के छोर को
वहीँ कहीं शायद किसी गाँठ में
हमने चावल के दानों के साथ
कसमें बाँधी थीं कभी
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