कभी कभी मेरे दिल में
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कि ये ज़मीन ये तारे ये झिलमिल बारात उनकी
ये चाँद का गहना जो रात ने पहना है
ये हवाओं की अठखेलियाँ जो लुभाती है दिल
ये रातों को छतों पर गुज़ारे हुए पल
ये सर्दियों की धूप में मखमल सी नींद
ये चूल्हे से उठता हुआ सौंधा सा धुआँ
ये सरसों के सुनहरे खेतों का दामन
ये दोपहरों की लुका छुपी में बीता बचपन
ये मासूम बचपन के जैसी ओस की बूँदें
ये खामोश मोहब्बत भरी दीवानी ग़ज़लें
ये सुबह का उभरता हुआ नारंगी सूरज
ये खिड़की पे बिखरते हुए धूप के टुकड़े
ये रेत में डूबे हुए पैरों के अंगूठे
ये तस्वीरों पर पड़े वक़्त के धब्बे
ये समंदरों को चखना नज्मों में
ये हाथों का मिलना अनजाने में
ये सिहरन जो उठती है उनके आने से
ये तलाश बंजारे से सवाली मन की
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
ये साँसों में घुलती हुई पल पल ज़िंदगी
और इससे हुई मुहब्बत के हमारे किस्से
क्या जी पायेंगे हमारे बाद भी…पल दो पल?
Originally published at http://sardeekeedhoop.blogspot.com.