वो नज़्म

Tulika Verma
sardikidhoop
Published in
Sep 24, 2023

ज़माने पहले एक नज़्म ने
पंख पसारे थे
हिचकिचाते हुए
मेरी मेज़ पर रखे कागज़ के पन्ने से
सौंधी सी महकी थी
धुंआ बन के हलके से
छाई थी फिज़ाओं में
तब वक़्त कुछ और था
तुम होते थे तसव्वुर में तब
उसी रोज़ सुबह तुमने
आँगन में सूखते गेहूँ की चादर पर
उजली सी धूप में
कुछ गेहूँ उठा कर मेरी जुल्फों में भरे थे
और सुनहरे दानों में
हम दोनों
खिलखिलाते रहे थे देर तक
वो हँसी आज भी सहेज रखी है
उस नन्ही सी नज़्म ने
उस सुबह के सूरज को
आज भी तापती है वो
घेरे से बनाती है चारों तरफ उस याद के
हमारे हाथों की लकीरों से
उस नज़्म से , उस याद से
आज भी मोहब्बत है मुझे
तुमसे नहीं तो क्या

Originally published at http://sardeekeedhoop.blogspot.com.

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