असहाबे सुफ्फा

Mohammad Salim
Short Hadees in Hindi
1 min readMar 10

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असहाबे सुफ्फा

जब मस्जिदे नबवी की तामीर हुई, तो उस के एक तरफ चबूतरा बनाया गया था, जिस को सुफ़्फ़ा कहा जाता है।

यह जगह इस्लामी तालीम व तरबियत और तब्लीग व हिदायत का मरकज़ था, जो सहाबा (र.अ) यहाँ रहा करते थे, उन को “असहाबे सुफ्फा” कहा जाता है, इन लोगों ने अपनी ज़िंदगी को अल्लाह की इबादत, रसूलुल्लाह (ﷺ) की खिदमत और कुरआन की तालीम हासिल करने के लिये वक्फ कर दिया था, उन का न कोई घर था और न कोई कारोबार।

आप (ﷺ) के पास कभी खाना आता तो इन लोगों के पास भेज देते थे और कभी खुद भी उन के साथ बैठ कर खाया करते थे। उन की तालीम के लिये पढाने वाले मुक़र्रर थे, जिन से वह लोग कुआने करीम सीखते और इल्मे दीन हासिल किया करते थे।

इसी लिये उन में अक्सर सहाबा कुरआन के बेहतरीन कारी थे, अगर कहीं इस्लाम की तब्लीग और, तालीम व तरबियत के लिये किसी को भेजने की जरूरत पेश आती, तो इन्हीं सहाबा में से किसी को भेजा जाता था।

रसूलुल्लाह (ﷺ) के जलीलुल कद्र सहाबी और हदीस को सबसे ज़ियादा रिवायत करने वाले हजरत अबू हुरैरा (र.अ) भी इन्हीं असहाबे सुफ्फा में थे।

📕 इस्लामी तारीख

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