काकभुशुण्ड और वित्तमंत्री

- शरद जोशी

Centre for Civil Society
Spontaneous Order
3 min readFeb 14, 2014

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एक राज्य का नया वित्तमंत्री काकभुशुण्डजी से मिलने गया और हाथ जोड़कर बोला कि मुझे शीघ्र ही बजट प्रस्तुत करना है, मुझे मार्गदर्शन दीजिए. तिस पर काकभुशुण्ड ने जो कहा सो निम्नलिखित है:

हे वित्तमंत्री, जिस प्रकार कैक्टस की शोभा काँटों से और राजनीति लंपटों से जानी जाती है उसी प्रकार वित्तमंत्री विचित्र करों तथा ऊलजलूल आर्थिक उपायों से जाने जाते हैं. पर-पीड़ा वित्तमंत्री का परम सुख है. कटोरी पर कर घटा थाली पर बढ़ाने, बूढ़ों पर कर कम कर बच्चों पर बढ़ाने और श्मशान से टैक्स हटा दवाइयों पर बढ़ाने की चतुर नीति जो बरतते हैं वे ही सच्चे वित्तमंत्री कहाते हैं. हे वित्तमंत्री, बजट का बुद्धि और हृदय से कोई संबंध नहीं होता. कमल हो या भौंरा, वेश्या अथवा ग्राहक, गृह अथवा वाहन तू किसी पर भी टैक्स लगा, रीढ़ तो उसी की टूटेगी जिसकी टूटनी है. हर प्रकार का बजट हे वित्तमंत्री! मध्यम वर्ग को पास देने का श्रेष्ठ साधन है. यह तेरे लिए कुविचारों और अधम चिंतन का मौसम है. समस्त दुष्टात्माओं का ध्यान कर तू बजट की तैयारी में लग. सरकारी कार का पेट्रोल बढ़ाने के लिए तू हर ग़रीब की झोंपड़ी में जल रहे दीये का तेल कम कर. अपने भोजन की गरिमा बढ़ाने के लिए हर थाली से रोटी छीन. जिसके रक्त से तेरे गुलाबों की रक्तिमा बढ़ती है उस पर टैक्स लगाने में मत चूक.

कारों की सीमा जल, थल और आकाश है. तू चर-अचर पर कर लगा, जीवित और मृत पर, स्त्री-पुरुष पर, बालक-वृद्ध पर, ज्ञात- अज्ञात पर, माया और ब्रम्‍ह के सम्पूर्ण क्षेत्र पर जहाँ तक दृष्टि, सत्ता अथवा भावना पहुँचती है, कर लगा. श्रम पर, दान पर, पूजा-अर्चन पर, मानवीय स्नेह पर, मिलन पर, शृंगार पर, जल-दूध जैसी आवश्यकता पर, विद्या, नम्रता और सत्संग पर, कर्म, धर्म, भोग, आहार, निद्रा, मैथुन, आसक्ति. भक्ति, दीनता, शान्ति, कांति, ज्ञान, जिज्ञासा, पर्यटन पर, औषधि, वायु, रस, गन्ध, स्पर्श आदि जो भी तेरे ध्यान में आये, शब्दकोश में जिसके लिए शब्द उपलब्ध हों उस पर कर लगा. अच्छे वित्तमंत्री करारोपण के समय शब्दकोश के पन्ने निरन्तर पलटते रहते हैं और जो भी शब्द उपयुक्त लगता है उसी पर कर लगा देते हैं. जूते से कफ़न तक, बालपोथी से विदेश यात्रा तक, अहसास से नतीजों तक तू किसी पर टैक्स लगा दे. तेरी धाध दृष्टि जेबों पर है और हे वित्तमंत्री, जेबें सर्वत्र हैं!

हे वित्तमंत्री, ईमानदार और मेहनती वर्ग पर अधिक कर लगा, जिनसे वसूली में कठिनाई नहीं होगी. जो सहन कर रहा है उसे अधिक कष्ट दे. ऐयाश, होशियार और हरामखाऊ वर्ग पर कम कर लगा, क्योंकि वसूली की संभावनाएँ क्षीण हैं. बदमाशों, सामाजिक अपराधियों और मुफ्तखोरों पर बिलकुल कर ना लगा क्योंकि वे देंगे ही नहीं. श्रेष्ठ वित्तमंत्रियों के बजट पीड़ित करने के लिए होते हैं.

हे वित्तमंत्री! बजट को यौवन के रहस्य की तरफ छुपाकर रख. किसी को पता ना लगे कि तू सोचता क्या है. बजट का खुलना भयानक संत्रास का क्षण हो. लोग तेरे वित्तमंत्री बनने पर पश्चाताप करें. जीवन से निराश हो जाएँ. यह सूझ न पड़े कि वर्ष कैसे बीतेगा? बजट एक हण्टर है. मॅाडर्न लोगों को, जिसने तुझे हण्टर दिया, बजट एक कहर है, उसे बरपा कर दे. बजट एक अड़ंगा है जीवन की राह में. सच्चे वित्तमंत्री वे हैं जो बदनामी में मुस्कराते हैं. सच्चा टैक्स वही है जो सुखी का सुख न बढ़ाए पर दुखी का दुःख अवश्य दूना कर दे.

बजट समाज के प्रति तेरी घृणा की अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम है. उसे गर्व से प्रस्तुत कर. कष्ट में पहले से डूबे मनुष्य तेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते वित्तमंत्री! स्वप्नों की इति ही बजट का अथ है- यह बात ध्यान रख.

इतना कहकर काकभुशुण्डजी चुप हो गये और वित्तमंत्री अपना बजट बनाने चला गया.

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नोट: यह रचना हिन्दी व्यंग-लेखक शरद जोशी जी ( जन्म: २१ मई, १९३१; उज्जैन. निधन: ५ सितंबर, १९९१; मुंबई.) की व्यंग-रचनाओं के संग्रह यत्र तत्र सर्वत्र (छठा संस्करण, 2010) से लिया गया है. प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ.

काकभुशुण्डजी के लिए सन्दर्भ: रामचरितमानस तीन विभिन्न वार्तालापों का संग्रह है — पहला शिव और पार्वती के बीच, दूसरा भारद्वाज मुनि और ऋषि याज्ञवल्क्या के बीच, और तीसरा काकभुशुण्डजी और कागपति गरुड़ के बीच.

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