अध्याय २, श्लोक १४
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Feb 12, 2022
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः । आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।
हे कुन्तीपुत्र ! सुख तथा दुःख का क्षणिक उदय और समय के क्रम में उनका अन्तर्धान होना सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओं के आने व जाने के समान है ।
हे भरतवंशी ! वे इन्द्रियबोध से उत्पन्न होते हैं और मनुष्य को उन्हे अविचल भाव से सहन करना चाहिये ।