अध्याय २, श्लोक १५

Suyash Upadhyay
Srimad Bhagavad Gita
Feb 12, 2022

यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ । समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ।।

हे पुरुषश्रेष्ठ ! जो पुरुष सुख तथा दुःख में विचलित नहीं होता और इन दोनों में समभाव रखता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है ।

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Suyash Upadhyay
Srimad Bhagavad Gita

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