आदर्श लोकतंत्र भारत
इतवार सुबह पढ़ रहा था खबरें मैं अखबार में
करोड़ों का नुकसान हुआ है आज कारोबार में,
एक खबर के नीचे लगा था कई ख़बरों का जमघट
लिखा था, Largest Democracy announces its budget
सोचा मैंने देश में फैले झूठ और मक्कारी है,
फिर क्यों लोकतंत्र हमारा आज भी सब पर भारी है ?
कही लोग ख़ुदकुशी कर रहें हैं क़र्ज़ के बोझ तले
वहीं कुछ है जो क़र्ज़ में भी विदेश बसने है चले,
हद से ज्यादा महंगे होते दाल और तरकारी है
आवश्यक है ऐसा कदम जो सबका हितकारी है,
अमीरी और गरीबी की खाई का बढ़ना जारी है
फिर भी कहते तंत्र हमारा आज भी सब पर भारी है ।
आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता ही जाता है
इस चक्कर में संसद का काम नहीं हो पाता है,
तरह-तरह के लोग यहाँ तरह-तरह के वादे हैं
बातों में तो अच्छे है, लेकिन अस्पष्ट इरादे हैं,
एक लूट गया सिस्टम को, अब दूजे की बारी है
फिर भी कहते तंत्र हमारा आज भी सब पर भारी है ।
कोई कहता बनाओ देश में, कोई घर वापसी चाहता है
तो कोई व्यक्ति जंतर मंतर पर धरना देना चाहता है,
कोई संसद की कार्यवाही ठप्प कराना चाहता है
तो कोई सिर्फ दूसरों की टांग खींचना चाहता है,
जितने भी पात्र हैं सबसे त्रस्त ये जनता सारी है
फिर भी कहते तंत्र हमारा आज भी सब पर भारी है ।
सरकारी अफसरों की यहाँ बात ही कुछ ख़ास है
आलस और सुस्ती का विश्व-रिकॉर्ड उनके पास है,
हर विभाग में, हर दफ्तर में फैला भ्रष्टाचार है
रिश्वतखोरी तो जैसे इनका जन्मसिद्ध अधिकार है,
उनसे पूछो तो कहते हैं यह ही दुनियादारी है
फिर भी कहते तंत्र हमारा आज भी सब पर भारी है ।
आरक्षण की आग में यहाँ गाँव शहर सब जलते है
मांग वो भी करते हैं जो खुद बंगलों में पलते हैं,
चाह पूरी करवाने के लिए हदें पार कर जाते हैं
पटरियाँ, बसें यहाँ तक कि इंसान फूंक दिए जाते हैं,
कुछ लोगों की मूर्खता के कारण पिसती जनता सारी है
फिर भी कहते तंत्र हमारा आज भी सब पर भारी है ।
प्रदर्शन करने वालों की आवाज़ दबा दी जाती है
विरोध करें तो उन पर लाठीचार्ज लगा दी जाती है,
आतंक के सौदागरों को हम ऐशो-आराम से रखते हैं
वहीँ न्याय के मंदिर को भी सुरक्षित नहीं कह सकते हैं,
कदम कदम पर लोकतंत्र की हत्या अभी भी जारी है
फिर भी कहते तंत्र हमारा आज भी सब पर भारी है ।
कई लोग अब इस देश को असहिष्णु सा बतलाते हैं
कुछ तो देश छोड़ने तक की बात यहाँ कर जाते हैं,
पता नहीं कुछ लोग क्या सिद्ध करवाना चाहते हैं
जो असहाय गरीबों का धर्मान्तरण करवाना चाहते हैं,
ऐसा लगता है कि लोकतंत्र के यही लोग अधिकारी हैं
फिर भी कहते तंत्र हमारा आज भी सब पर भारी है ।
दहशतगर्द इस देश को तार-तार करना चाहते हैं
कोई कश्मीर तो कोई अरुणाचल हथियाना चाहते हैं,
कुछ घर के भेदी देश विरोधी नारे लगाना चाहते हैं
तो कुछ और हैं जो देश के टुकड़े करवाना चाहते हैं,
इन घावों से कराह रही है, भारत माँ बेचारी है
फिर भी कहते तंत्र हमारा आज भी सब पर भारी है ।