एग्जाम गाथा : खड़गपुर स्पेशल

Surendra Puri
Technology Literary Society
2 min readFeb 7, 2017

एग्जाम से पहले किताबों के पन्ने जब खुलते हैं,
शब्दों की चपेट में मेरे सारे सपने कुचलते हैं |
जब क्लास न जाने की ठेस मन ही मन कचोटती है,
प्रोफेसर की वाणी जब नींद में भी झकझोरती है |
जब नोट्स को मगना भी बेमानी सा लगता है,
जब हर नहली दोस्त हरामी सा लगता है |
तब एक सच्चे दोस्त के बिन मगना गद्दारी लगता है,
और उस सच्चे दोस्त के बिन मरना भी भारी लगता है |

जब नोट्स की भीख माँगते सारा बैलेंस उड़ जाता है,
एग्जाम से एक दिन पहले पढाई से भरोसा उठ जाता है |
जब “सब कुछ मोह-माया” कहने की बारी आ जाती है,
“Summer Quarter” वाली गाड़ी पर मेरी सवारी आ जाती है|
जब “क्या ही उखाड़ लेंगे” के नारे लगने लगते हैं,
पर फिर भी सभी लोग पूरी रात मगने लगते हैं |
तब एक सच्चे दोस्त के बिन मगना गद्दारी लगता है,
और उस सच्चे दोस्त के बिन मरना भी भारी लगता है |

रूमी कहता उस सच्चे दोस्त की कोई औकात नहीं,
उसके पास तेरे लिए अब कोई सौगात नहीं,
वो सच्चा दोस्त मेरे खातिर सारे नोट्स जुगाड़ता है,
एक रात में सारे सेमेस्टर का ज्ञान मुझे रटवाता है |
वो सच्चा दोस्त कहता मुझसे, तू तो मेरा भाई है,
लेकिन क्या करूँ यार, मेरी भी शामत आई है |
बस उस सच्चे दोस्त के संग मगना फुलवारी लगता है,
और उस सच्चे दोस्त के बिन मरना भी भारी लगता है |

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