Ek gareeb maa
एक बच्चा अपनी माँ से पूछता है की माँ आखिर तू क्यों रोती है ? भोला नादान सा वो बच्चा आखिर क्या जाने की उसकी की माँ की आँखें क्यों बार बार नम हो जाती है ? उसने तो इतना ही समझा है अपनी माँ को, की जब भी वो पाठशाला से कुछ जीत लाया था तो उसकी माँ ने उसे चूमा था। उसके रुठने पर उसे गोद में बिठाकर खिलाया था। तो वो बच्चा कुछ यूँ पूछता है :-
जब
जब से होश संभाला खुद को तेरा पाया
तेरी आँचल में आकर. बड़ा सुकून पाया
जब भी रोया आंसू तेरी आँखों में भी आये
तो तू क्यों रोए माँ वो भी बिना मुझे बताये ?
छोटी छोटी बातों को तूने बिना कहे सिखाया था
मेरी बचकानी बातों पर भी तो सिर्फ तुझे ही यकीं आया था
तो क्यों बैठी है खुद सारे ग़मों को छुपाए
आखिर तू क्यों रोए माँ वो भी बिना मुझे बताये
मेरी कामयाबी तुझे भी गुदगुदाती थी
और मेरी ख़ामोशी तुझे पागल कर जाती थी
क्यों बैठी तू चुपचाप आखिर क्या तुझे सताए
बोल न माँ ,
क्यों रोती है तू वो भी बिना मुझे बताए
कोमल मन क्या जाने संसार के दाव पेंच ? क्या पता उसे की क्यों सुबह माँ के गालों पर निशान बने हैं , माँ के हाथ तो अनायास ही जल जाते हैं। दादी ने तो यही कहा था। हाँ, नानी से कुछ अनबन सी थी , शायद पैसों को लेकर। पता नहीं एक पानी सा चंचल मन क्या समझे की दहेज़ क्या होती है ?
ऐ माँ तेरे हाथ जले क्यों हैं ?
ऐ माँ तेरे होठ सिले क्यों हैं?
रोटी तो तूने बना ली थी शाम को ,
तब तो तेरे हाथ पर निशान नहीं थे।
दादी भी चुप है , चाचा भी हसते हैं,
पापा पहले इतने अनजान नहीं थे।
हँसती है तू , मुस्कुराती है तू मुझको सुला कर सहम जाती है तू
माँ तू बोल ना मैं खिला दूँ क्या ? भूखी. है कल से, पानी ही पिला दूँ क्या?
तेरी आँखें कुछ तो कहती है माँ , मैं. समझ ही नहीं. पता हूँ।
पापा ने जो गिलास. तोड़ी थी , मैं तो खुद. सहम जाता हूँ।
ऐ माँ दहेज़ क्या होता है ? नानी ने कुछ चुराया है क्या ?
नाना जी कल क्यों आए थे ? उनका कुछ बकाया. क्या ?
तूने बोला अपने बाबा से की तू. बहुत हसती है
माँ तूने ही तो मेरी कान. मरोड़ी थी याद है ? और कहा था की बेटा “ सच महंगी और झुठ बहुत सस्ती है। “
बच्चे की दुविधा दूर हुई भी नहीं थी की थोड़े ही समय में एक सुबह उसने रोने की आवाज़ें सुनी। पास के मोहल्ले की औरतों ने क्या झूठा आक्रोश मचा रखा था। दादी इतना भी तो नहीं चाहती थी मेरी माँ को जितना की आज वो रोइ है।
अरे! सोयी है क्यों ? उठाया क्यों नहीं ?
वो मेरे पेट पर गुदगुदी लगाया क्यों नहीं ?
सफ़ेद चादर में सोई है आज? तुझे तो नीला पसंद था ना. माँ ?
तेरे चेहरे जले क्यों हैं? झूठी , कोई क्रीम लगाया है क्या ?
भूख. लगी है माँ उठ ना अब, अच्छा , रोटी बनाया है क्या ?
तू जली कैसे माँ ? मेरे सोने से पहले तो चूल्हे बंद थे।
मेरे गर्म दूध के लिए क्या तुझे चूल्हे का काम था ?
अरे ! नहीं , दूध तो थी ही नहीं बर्तन में , उसमे तो पापा का जाम था !!
बच्चे की मन : स्थिति. सोचिये , १० दिन नहीं बीते और आज उसकी नयी माँ ने उसे १० रुपये देते हुए अपना लाड़ जताया है। वाह! १० रुपए में बिक गयी एक गरीब माँ की ममता.
माँ मैं रोता हूँ अपने कपड़े भी खुद धोता हूँ
डरता हूँ माँ वो बुढ़िया तो नहीं आएगी जो तुमने सुनाई थी वो काली वाली?
वो क्या है. माँ , मैं नीचे. में अकेले ही सोता हूँ।
सुना है मेरा नया भाई आएगा ,
उस दिन मिठाई देने का वादा किया है।
तू तो हमेशा खिलाती थी माँ , तेरे आँचल के खुटे ने बहुत ज्यादा दिया है
कहते हैं तू ऊपर गयी है बहुत , चल मैं एक पतंग बनाता हूँ
डोर पकड़ के नीचे आ जाना माँ , या बोल तो मैं ही ऊपर आता हूँ।