Ekrar kahan karti ho ?
कुछ कहना है तुमसे जो. शायद तुम्हे पता है , तो क्यों इकरार नहीं करती हो ?
मेरी आँखों में देख कर एक बार कह दो की तुम मुझसे प्यार नही करती हो
तुम्हारे एक एक बात को लाखों बार पढ़ा है मैंने
अपने हर प्यार को दोस्ती में बेकार ही मढ़ा है मैंने
तुम यूँही रूठ जाती हो मेरे मानाने के इंतज़ार में गैरों से बेकार कहाँ लड़ती हो ?
जब प्यार करती है तो फिर इकरार कहाँ करती हो?
तुमसे बात करने को मेरा दिल ज़ोर से धड़कता है
ना जाने तुमसे जुड़ी हर छोटी बात को पकड़ता है
मेरी प्यार की गागर में सागर हर बार तुम ही भरती हो
जब प्यार करती है तो फिर इकरार कहाँ करती हो?
मेरी ख़ामोशी ने जब बेचैन किया था तब यूँ ही पास आ गयी थी
जब मैं पास आता हूँ तो क्यों दूर चली जाती हो ?
मेरे पास आने का खौफ है और खोने से मुझको डरती हो ?
मेरे आंसू पोछने को क्यों कभी इंकार नहीं करती हो ?
जब प्यार करती है तो फिर इकरार कहाँ करती हो?
ये भी कोई मज़बूरी हो ? दो प्यार करने वालों में बिना बात की कहीं दूरी हो ?
जलती हो ना तुम जब कोई और मेरे करीब आती है ?
क्यों अपने अलावा सबको अपना रकीब पाती है ?
किसी और के साथ जान बुझ कर समय बेकार कहाँ करती हो ?
जब प्यार करती हो तो फिर इकरार कहाँ करती हो ?