How a Nation Destroys?
राष्ट्र का विनाश कैसे होता है?
1. जब किसी राष्ट्र के नेता अपने राजनैतिक स्वार्थ हेतु राष्ट्रहित की बलि चढ़ाते हैं।
2. जब व्यक्ति व संगठन अपने स्वार्थ को राष्ट्रहित से ऊपर समझने लगते हैं।
3. जब राजनेता अपने राजनैतिक प्रतिद्वन्दी का अहित करने हेतु पड़ोसी शत्रु राष्ट्र के नेताओं से सहयोग मांगते वा ऐसी इच्छा करते हैं।
4 जब नागरिक विदेशी व्यक्ति, सम्प्रदाय, संस्कार, परम्परा, शिक्षा, कानून आदि को स्वदेशी व्यक्ति, सम्प्रदाय, धर्म, संस्कार आदि से श्रेष्ठ मानने लग जाते हैं अर्थात् वे विदेशों के बौद्धिक दास बन जाते हैं।
5. जब नेता विदेशी आक्रान्ताओं की दुष्टनीति का अनुसरण करके राष्ट्र के नागरिकों को जाति, सम्प्रदाय, भाषा आदि के नाम पर बांट कर अपनी सत्ता को बनाए रखना अथवा सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं।
6. जब राष्ट्र के विभिन्न गणों के नेताओं अर्थात् कथित जाति अथवा मजहबी नेताओं (धर्मगुरुओं) में परस्पर ईर्ष्या-द्वेष उत्पन्न हो जाता है।
7. जब संगठनों के नेता अपने संगठन के लाभ के लिए दूसरे संगठन अथवा राष्ट्र के हित की उपेक्षा करने लगते हैं।
8. जब कर्म व चरित्र की अपेक्षा जन्मना जाति की व्यवस्था स्वीकार्य हो जाती है और इसी के आधार पर भेदभाव (सामाजिक व राजनैतिक) होने लगता है।
9. जब नागरिक व शासक दोनों अपनी भौतिक आवश्यकताओं को अपनी योग्यता व कर्म की अपेक्षा बढ़ाने का प्रयत्न करने लगते हैं।
10. जब योग्यता व चरित्र पर अयोग्यता व दुष्चरित्रता हावी होने लगती है।
11. जब अपनी ही उन्नति व सुख में डूबे नागरिक अथवा शासक अपने ही देश के अन्य नागरिकों को दुःखी करने में संकोच नहीं करते।
12. जब नागरिक व नेता सत्य-विज्ञान व सत्यधर्म से दूर होकर अंधविश्वासों व अवैज्ञानिक रूढ़ियों में फंसने लगते हैं।
13. जब नागरिक व नेता कामी, लोभी, अहंकारी, मोही, ईर्ष्यालु व असहिष्णु हो जाते हैं।
14. जब राष्ट्रवासियों का भोजन मांस व मादक पदार्थ आदि तमोगुणी व तीव्ररजोगुणी हो जाता है।
15. जब दण्ड व्यवस्था व न्याय प्रक्रिया शिथिल व पक्षपातपूर्ण हो जाती है।
16. जब नागरिक व नेता अपने राष्ट्र के प्राचीन गौरव, इतिहास, आदर्श व संस्कारों से घृणा करने अथवा उनकी निंदा करने लगते हैं और शत्रु देश के नेताओं, नागरिकों अथवा मानवता के शत्रुओं (आतंकवादियों) की भाषा बोलने लग जाते हैं।
17. जब कथित धर्मगुरु अवैज्ञानिक मान्यताओं को प्रचारित करते तथा धन, यश व प्रतिष्ठा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लेते हैं।
18. जब राष्ट्रवासी त्यागवाद के स्थान पर भोगवाद के मार्ग पर चलने लगते हैं।
तब, वह राष्ट्र नष्ट हो जाता है-
दुर्भाग्य से ये सभी लक्षण आज हमारे इस अभागे देश में देखे जा रहे हैं। कहीं जातीय व साम्प्रदायिक, तो कहीं राजनैतिक विद्वेष व हिंसा का ताण्डव है। असहिष्णुता व बौद्धिक दासता चरम पर है। धर्मगुरु, नेता, समाजसेवी, शिक्षाविद सभी इसके समानरूप से उत्तरदायी हैं। कोई नहीं समझ रहा कि देश को मिटाकर उनका स्वयं का भी विनाश हो जाएगा। न देश रहेगा, न सत्ता।
मेरे प्यारे देशवासियो! जागो! यदि बचना है, तो देश को बचा लो अन्यथा आपकी भावी पीढ़ी आपकी करतूतों पर खून के आंसू बहायेगी। उठो! समय की पुकार सुनो, विनाश की आहट सुनो। ईमानदारीपूर्वक अपने धर्म व कर्त्तव्य को समझो और उसका निष्ठापूर्वक पालन करने हेतु कटिबद्ध हो जाओ।
- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक