Towards the Vaidic Science — 12
Today, the world is entangled in the above-mentioned vortex. After discussions of scientists and their misconceptions we also discuss some of the different religions and their philosophical beliefs. We know very clearly that every sect and their basic text, which believes in God’s power, considers God to be the creator and operator of the universe. No sect believes that his God, whom he calls Ishvar, Khuda, God, or anything else, creates and abides of the same community, but he considers him the father-mother of all the world. But when he behaves in the world, he captivates himself in the chains of religion or the so-called caste and treat other humans as any external creature. This defect is being seen in all communities of the world. Christians are divided into sections of Catholics and Protestants, even after being one Bible follower. Muslims, who believe in one Quran, are shedding blood separated in Shia-Sunni or many other sects. On the other side, there is no limit of sects in the Hindus. Many of ancient so-called Gods, thousands of sects, thousands of present-day fake Gods, thousands of so-called castes, sub-castes, separate Gods of those castes, and many others, is responsible for the plight of Hindu society. Here, brick, stone, river, snake, tree are also considered God and being worshiped. Actually, the human worships them, but in fact, he does not worship the real God, who is creator, operator, Omnipresent and formless.
In such a tragic situation, what is the matter of the universe, how can the unity of this earth and even India and Hindus be possible? Considering Dharma and God as the only subject of beliefs, the society and the world is worshiping them drowned in ignorance. There is no place of real logic and science in religion. In fact, all these God-believing people do not even know in the dream that what is God? How does he create and operate the universe? What is his mechanism? In the absence of this true knowledge, all human beings are wandering in darkness of ignorance and sowing seeds of mutual suffering.
The true path of real knowledge will be given to all these wandering human beings, whether they are scientist or followers of God, communal goodwill or followers of the leftist or atheist communities by Our Vaidic Science.
To be continued ……..
वैदिक विज्ञान की ओर — 12
आज संसार इसी भंवरजाल में फंसा आर्तनाद कर रहा है। हम वैज्ञानिकों एवं उनकी भ्रान्ति की चर्चा के उपरान्त विभिन्न सम्प्रदायों एवं उनकी दार्शनिक मान्यताओं पर भी कुछ चर्चा करते हैं। हम यह बात स्पष्टता से जानते हैं कि हर सम्प्रदाय एवं उनका आधार ग्रन्थ, जो ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता है, ईश्वर को सृष्टि का रचयिता व संचालक मानता है। कोई सम्प्रदाय यह नहीं मानता कि उसका ईश्वर, जिसे वह खुदा, गॉड अथवा कुछ भी क्यों न कहता हो, उसी सम्प्रदाय के मनुष्यों को पैदा करता व पालता है, बल्कि वह उसे संसार का पिता-माता मानता है। किन्तु संसार में जब वह व्यवहार करता है, तब स्वयं को अपने मजहब, धर्म वा कथित जाति की जंजीरों में बांध कर अन्य मनुष्यों को सृष्टि से कोई बाहरी जीव जैसा मानकर व्यवहार करता है। यह दुर्गति संसार के सभी समुदायों में देखी जा रही है। ईसाई एक बाइबिल के अनुयायी होकर भी कैथोलिक व प्रोटेस्टेन्ट के वर्गों में बंटे हैं। एक कुरान के मानने वाले मुसलमान भी शिया-सुन्नी आदि अनेक फिरकों में खण्ड-2 होकर आपस में खून बहा रहे हैं। इधर हिन्दुओं में तो कोई सीमा नहीं है। हजारों प्राचीन शरीरधारी भगवान्, हजारों सम्प्रदाय, हजारों वर्तमान नकली भगवान्, अविद्या व पाप के भण्डार असंख्य गुरु, हजारों कथित जातियां-उपजातियां, उन जातियों के पृथक्-2 भगवान्, न जाने कैसा-2 विघटन, यह हिन्दू समाज की दुर्दशा के लिए उत्तरदायी है। यहाँ तो ईंट, पत्थर, नदी, सर्प, वृक्ष भी भगवान् हैं। वस्तुतः वह इन सबको पूजता है परन्तु वास्तव में पूजनीय सृष्टि रचयिता, सर्वव्यापक, निराकार, वास्तविक परमात्मा की उपासना नहीं करता।
ऐसी दुःखद स्थिति में ब्रह्माण्ड की बात क्या करें, इस पृथ्वी और यहाँ तक कि भारत व हिन्दू की एकता भी कैसे सम्भव है? धर्म व ईश्वर को मात्र आस्थाओं का विषय मानकर अविद्या अंधकार में डूबा यह समाज व संसार पूज रहा है। यथार्थ तर्क व विज्ञान का कोई स्थान धर्म में नहीं रहा है। वस्तुतः ये सभी ईश्वरवादी ईश्वर को मानते हुए भी यह स्वप्न में भी नहीं जानते कि वह ईश्वर कैसा है? वह सृष्टि की रचना व उसका संचालन कैसे करता है? उसका क्रिया-विज्ञान क्या है? इस यथार्थ ज्ञान के अभाव में सभी मनुष्य अविद्या अंधकार में भटक रहे तथा परस्पर दुःखों के बीज बो रहे हैं।
इन सब भटकते हुए मानवों, चाहें वे वैज्ञानिक हों वा ईश्वरवादी साम्प्रदायिक महानुभाव अथवा वामपंथी वा अनीश्वरवादी समुदायों के अनुयायी, सभी को सत्य का यथार्थ मार्ग सुझायेगा हमारा वैदिक विज्ञान।
क्रमशः ……..
-आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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