Towards the Vaidic Science — 14
This is the reason why scientists and religious scholars are so far apart that they do not have any interaction with each-other. Common people are in a state of suspicion on both sides. Sir Albert Einstein, Richard P. Feynman, Sir Isaac Newton and many other top scientists believed in the power of God, but they were dependent on the alleged religious leaders (clergymen) for what is the God. They never asked that what is God and what is the process of creation of the universe by him in their religious scriptures? is there any similarity to their modern science or not? If they used to question anything on the beliefs of God, then the theist people would also be forced to think about the God. But no scientist ever had the courage to do this. Recently, British scientist Stephen Hawking has done a good analysis and rejection of such fabricated Gods in his book “The Grand Design”. Yes, it is right that he advocated cutting the head to remove headache. In the process of rejecting the fabricated Gods, he also rejected the necessity of true God. I understand that the reason for his mistake is that he has never heard anything about the true God. Such an atheist scientist only claims to understand the projection, experimentation and mathematical interpretations gained from his power. In this ego, they reject the role of the creator and continues to disseminate many contradictory findings by calling them their own theories. In this way, both the theist and atheist scientists drown themselves and other people in the ocean of misery by presenting half truth to the world.
To be continued ……..
Acharya Agnivrat Naishthik
वैदिक विज्ञान की ओर — 14
यही कारण है कि वैज्ञानिक एवं धर्माचार्य कहाने वाले परस्पर इतने दूर हैं कि उनका परस्पर कोई संवाद भी कभी नहीं होता। जन साधारण दोनों ओर दोलायमान होता हुआ संशय में पड़ा है। सर अल्बर्ट आइंस्टीन, रिचर्ड पी. फाइनमैन अथवा सर आइजक न्यूटन आदि अनेक शीर्ष वैज्ञानिक ईश्वर की सत्ता में विश्वास करते थे परन्तु वह ईश्वर कैसा है, इसके लिए वे कथित धर्माचार्यों (पादरियों) पर ही आश्रित थे। उन्होंने कभी यह नहीं विचारा कि जिसे धर्माचार्य ईश्वर कह रहे हैं तथा उसके द्वारा सृष्टि-रचना की जो प्रक्रिया उनके कथित धर्मग्रन्थों में वर्णित है, उसकी भौतिक विज्ञान से कहीं कुछ समानता है अथवा नहीं? यदि वे वैज्ञानिक ईश्वरवादियों द्वारा प्रचलित मान्यताओं पर कुछ भी प्रश्न खड़े करते, तो वे ईश्वरवादी भी कुछ सोचने को विवश होते। परन्तु ऐसा करने का साहस कभी किसी वैज्ञानिक ने नहीं किया। अभी हाल में ब्रिटिश वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने अवश्य अपनी पुस्तक “The Grand Design” में ऐसे मनगढ़न्त ईश्वरों का अच्छा खण्डन किया है। हाँ, इतना अवश्य है कि वे सिरदर्द दूर करने के लिए सिर को ही काटने की वकालत कर बैठे। उन्होंने मनगढ़न्त ईश्वर का खण्डन करते-2 वास्तविक ईश्वर को ही नकार दिया। मैं समझता हूँ कि उनकी भूल का कारण यह हैै कि उन्होंने सच्चे ईश्वर के बारे में कभी कुछ सुना ही नहीं। ऐसे अनीश्वरवादी वैज्ञानिक केवल अपने सामर्थ्य से प्राप्त प्रक्षेपण, प्रयोग व गणितीय व्याख्याओं को समझने का दावा करते हैं। इस अहंकार में सृष्टि रचयिता की भूमिका को नकार देते हैं तथा अनेकों परस्पर विरोधी मिथ्या निष्कर्षों को अपनी-2 थ्योरीज् कहकर प्रचारित करते रहते हैं। इस प्रकार ईश्वरवादी एवं अनीश्वरवादी दोनों ही प्रकार के वैज्ञानिक अर्धसत्य को ही संसार के समक्ष प्रस्तुत करके दुःखों के सागर में डुबोते रहते हैं।
क्रमशः ……..
-आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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