Towards the Vaidic Science-18

Agnivrat Naishthik
4 min readJan 22, 2018

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Truth is the path of simplicity and untruth is of maladjustment, that is, truth is a way of straightforwardness, cleanliness, openness and untruth, is of rugged, crowded path. Unfortunately, the person is going to abandon the simple path and like to go on a crooked path. It is of special consideration that animals, birds and new born children often follow the truth, whereas the person who assumes himself to be wise, always thinks of pride in walking on a false path of deceit and maladjustment. When a child is born, at that time he is free from any narrowness of Hindu, Muslim, Christian, Jew, Persian, Buddhist, Jain, Sikh, Communist etc. At that time, he is also far away from the discrimination of the so-called castes and is an innocent person. He has no bad values like discrimination, jealousy, hatred, fabrication etc. But as soon as it starts to grow in the shadow of his mother, father, other dependents and society, who all consider themselves as decent and intelligent, put jealousy, hatred, deception, violence, discrimination, the poison of communal fanaticism within that child. By that the same holy child becomes the generator of fear and unrest in this society, or he becomes fierce man and sow the seeds of hatred.

My friends! Just think, is this the use of wisdom given by God? In this way animal and birds are good than man, which are free from these sins. Non-vegetarian animals also prey on hunger only. They do not commit violence having overwhelmed by discrimination, hatred, deceit, jealousy etc.

There is only one reason for this total misunderstanding in my opinion that they do not have the knowledge that the whole creation is created by the same substance and by the same mechanism. All our, to be used substances are destructive and we, spirits are eternal. If people ponder all this, then this human can not be an enemy to each-other. Today, if man is fearful and sad to anyone, then, it is only man. This is the irony of this unfortunate world.

To be continued …….

  • Acharya Agnivrat Naishthik

वैदिक विज्ञान की ओर-18

सत्य सरलता का एवं असत्य कुटिलता का मार्ग है अर्थात् सत्य सीधा, साफ, खुला रोड है तथा असत्य टेढ़ा-मेढ़ा, भीड़-भाड़ वाला मार्ग है। दुर्भाग्य है कि मनुष्य सरल मार्ग को त्याग कर टेढ़े-मेढ़े दुःख भरे मार्ग पर जाना पसन्द कर रहा है। यह बात विशेष विचार की है कि पशु, पक्षी एवं अबोध बालक प्रायः सत्य का ही अनुसरण करते हैं जबकि स्वयं को बुद्धिमान् मानने वाला मनुष्य सदैव छल, कपट वाले मिथ्या मार्ग पर चलने में गौरव समझता है। जब बालक जन्म लेता है, उस समय वह हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी, पारसी, बौद्ध, जैन, सिख, कम्यूनिस्ट आदि किसी भी संकीर्णता से मुक्त होता है। उस समय वह नाना कथित जातियों के भेदभाव से भी दूर एक निर्दोष मनुष्य होता है। उसमें मिथ्या छल-कपट, बनावटीपन आदि कुछ भी विकार नहीं होते, परन्तु ज्यों ही वह बड़ा होने लगता है, उसमें माता, पिता व अन्य परिवारीजन एवं समाज, जो सभी स्वयं को सभ्य व बुद्धिमान् मानते हैं, उस बच्चे के अन्दर ईर्ष्या, द्वेष, छल-कपट, हिंसा, वैर, ऊँच-नीच का भाव, साम्प्रदायिक कट्टरता का ऐसा विष भर देते हैं कि वही पवित्र बालक इस समाज में अशान्ति व भय पैदा करने वाला बन जाता है, वह घृणा-फूट का बीज बोने वाला भयंकर मनुष्य बन जाता है।
मेरे मित्रो! जरा विचारें कि क्या परमात्मा द्वारा प्रदत्त बुद्धि का यही उपयोग है? इससे तो पशु, पक्षी ही अच्छे हैं, जो इन पापों से मुक्त रहते हैं। मांसाहारी पशु भी केवल भूख मिटाने के लिए शिकार करते हैं। वे घृणा, भेदभाव, छल-कपट आदि के वशीभूत होकर किसी की हिंसा नहीं करते हैं।
मेरे मत में इस सम्पूर्ण नासमझी का एक ही कारण है कि उन्हें यह ज्ञान नहीं है कि सम्पूर्ण सृष्टि एक ही समान पदार्थ से तथा एक ही क्रियाविज्ञान द्वारा बनी है। हमारे ये सारे भोग्य पदार्थ अनित्य हैं और हम जीवात्मा नित्य हैं। यदि ऐसा सभी विचारें, तो यह मानव परस्पर शत्रु नहीं हो सकते। आज मनुष्य यदि किसी से भयभीत व दुःखी हैं, तो वह केवल मनुष्य से ही है। यह इस अभागे संसार की विडम्बना है।
क्रमशः …….

  • आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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Agnivrat Naishthik
Agnivrat Naishthik

Written by Agnivrat Naishthik

A Vaidic Scientist, Philosopher and Author. Researcher @vaidicscience discovered new theory- “Vaidic Rashmi Theory”