ध्येयवादी जीवन का सार

Jigyasa Dixit
The Weave Magazine
Published in
6 min readJul 19, 2021

अन्ना हजारे: सामाजिक कार्यकर्ता

लेखिका: Jigyasa Dixit

भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे उस समय सुर्खियों में आए जब उन्होंने व्यापक और प्रभावी नागरिक लोकपाल विधेयक, जिसे जन लोकपाल विधेयक के रूप में जाना जाता है, की माँग को लेकर 2011 में अनशन किया। 1975 में ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए अपनी यात्रा शुरू करने वाले 84 वर्षीय गांधीवादी को अब भ्रष्टाचार के खिलाफ एक योद्धा के रूप में देखा जाता है।

Weave Magazine के साथ बातचीत में, हजारे ने अपनी सामाजिक सक्रियता, उनकी धारणा और नवयुवकों के लिए उनके दृष्टिकोण के पीछे की प्रेरणा के बारे में बात की।

बातचीत का संपादित प्रतिलेख इस प्रकार है।

आपका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायक रहा हैं। बचपन से आपका पूरा जीवन संघर्ष से भरा हुआ रहा हैं। इतने संघर्षपूर्ण जीवन के बाद भी आपने अपना पूरा जीवन जनसेवा में समर्पित करने का फ़ैसला क्यूँ किया?

मेरे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और इसीलिये जब मैं छोटा था, स्कूल में पढ़ रहा था, तब फूल बेचकर ही पैसे कमाना और अपनी शिक्षा स्वयं ही करना, इस तरीके से बचपन से काम शुरू किया। बचपन से ही माँ ने संस्कार दिए। मेरी माँ एक अल्पशिक्षित स्त्री थी, लेकिन उनकी एक सीख मेरे जीवन को काफी प्रभावित करती है, वह हमेशा कहती थीं, कभी चोरी नहीं करना, कभी झूठ नहीं बोलना, हमेशा समाज का भला करना है। यदि नहीं भला कर सकते तो कम से कम बुरा नहीं करना। जिनके परिवार में ग़रीबी है वे उस ग़रीबी में ध्येयवादी बनकर अगर काम करते है तो हमेशा संघर्ष करते रहते है, इसिलिये ध्येयवादी बनें। अगर अमीर हैं और कोई लक्ष्य न हो तो वह संघर्ष इतना नहीं करेगा, जो व्यक्ति ध्येयवादी है, और गरीबी से जूझते हुए भी समाज और देश की सेवा करने का जुनून रखता है, वह जीवन भर संघर्ष से घबराता नहीं है और निरंतर सफलता के पथ पर बढ़ता जाता है। मेरे जीवन में पहले माँ के संस्कार और बाद में महात्मा गांधी जी और स्वामी विवेकानंद के विचारों का प्रभाव पड़ा। स्वामी विवेकानंद कहते थे, जीवन का लक्ष्य निश्चित करो। हमें डॉक्टर बनना है, वकील बनना है, वैज्ञानिक बनना है, यह तो हम निश्चित करते हैं, लेकिन संपूर्ण जीवन का ध्येय क्या, यह निश्चित करना है। जब कार्यकर्ता अपना लक्ष्य निश्चित कर लेता है, वह मृत्यु पर विजय पा लेता है, मृत्यु से वह डरता नही है । एक बार आपको मंज़िल दिखाई दी और ध्येयवादी बनकर आप चलने लगे तो कठिनाईयां आयेंगी, दिक्क़तें आयेंगी, विरोध होगा। इस पर विवेकानंद कहते हैं इन सबको देखो मत निरंतर चलते रहो, चाहे मृत्यु आ जाये कोई परवाह नहीं। मैंने अपने जीवन का ध्येय बनाया और बस समाज और देश की भलाई के लिए चलता रहा।

आपके जीवन में महात्मा गांधी या फिर उनकी धारणा ने क्या भूमिका निभाई है?

महात्मा गांधी जी के जीवन से मुझे सत्यता और अहिंसा को जीवन में अपनाने की प्रेरणा मिली । सत्य के मार्ग पर चलने वालो के जीवन में कई कठिनाईयां आती हैं , परन्तु सत्य कभी पराजित नहीं होता। अभी कल ही हमने पर्यावरण दिवस् मानया, गांधी जी कहते थे प्रकृति और मानवता का दहन मत करो, दहन करके किया हुआ विकास शाश्वत नहीं है, उसका विनाश होगा। गांधी जी के इन्ही विचारों से मैंने अपने जीवन का लक्ष्य साधा।

क्या आप हमें रालेगण सिद्धि के परिवर्तन के बारे में बता सकते हैं? इस परिवर्तन के समय आपको किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा था?

रालेगण सिद्धि के परिवर्तन में कई चुनौतियां आईं। जब हम विकास कर रहे होते हैं तो उस जगह के जो प्रतिष्ठित लोग होते हैं उनको लगता है, अगर ये गाँव का विकास हो गया तो मेरी प्रतिष्ठा का क्या होगा? ऐसे लोग विरोध में खड़े हो जाते है। गाँव में पटेल है, उनको लगता है, गाँव यदि एकजुट हो गया तो मुझे पटेल कौन कहेगा। अगर हम में अपमान सहने की शक्ति होती है तो विरोधी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मैंने जब मेरे गाँव में काम शुरू किया तब मेरा बहुत विरोध हुआ। अच्छे काम में हमेशा विरोध होगा, निंदा होगी, उस से डरना नहीं, उससे थकना नहीं, बस चलते रहना।

आपने ग्रामीण विकास, सरकारी पारदर्शिता, भ्रष्टाचार, शिक्षा, अस्पृश्यता जैसे कई मुद्दों पर विभिन्न सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया है। आपके विचार से आप के अब तक के जीवन में ऐसी कौन-सी कहानी है जो नई पीढ़ी के लिये प्रेरणादायक और प्रभावशाली हो सकती हैं?

मैंने अपने गाँव के विकास के लिए वाटर मैनेजमेंट, एग्रीकल्चर डेवलपमेंट का साथ लिया। जब मैंने देखा की डेवलपमेंट के साथ भ्रष्टाचार भी हो रहा है तो उसे रोकने के लिए डेवलपमेंट के साथ ही भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन शुरू किया। धीर-धीरे समझ आया की किसी पर ऊँगली उठाने से करप्शन खत्म नहीं होगा। हमारा देश कानून के आधार पर चला है, हमारा संविधान सबसे ऊँचा है। संविधान के आधार पर क़ानून बनते है और कानून के आधार पर देश चलता है। फिर हम ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिये, कानून बनाने के लिए शुरुआत की। पहले हमें नज़र आया RTI, सूचना का अधिकार, यह बहुत ज़रूरी है। सरकार के तिजोरी में जमा होने वाला पैसा जनता का पैसा है। मेरा पैसा आप कहाँ-कहाँ खर्च करते है, वह हर एक डिपार्टमेंट से पूछने का हमारा अधिकार है। उसे उपलब्ध करने के लिए हम ने 8 साल संघर्ष किया। अस्पर्शिता निवारण हमारे देश के लिए बहुत बड़ी समस्या है, वह हमारे देश के लिए बहुत बड़ा ख़तरा है। मेरे गाँव में अस्पर्शिता के चलते लोग दलितों को अपने घर में नहीं आने देते, मंदिरों में नहीं आने देते, अलग कुएँ का उपयोग करने के लिए मजबूर करते हैं , लेकिन आज ये बदलाव आया है कि जब हमारे गाँव में दलितों पर 60,000 का कर्ज़ा आया और वह चुका नहीं पाये तो पूरे गाँव ने कहा कि हम श्रमदान करके उनकी सहायता करेंगे। 2 साल में पूरे गाँव ने दलितों के खेतों में फ़सल उगाई और श्रमदान से उनका पूरा कर्जा चुकाया।

1990 में पद्मश्री और 1992 में पद्मभूषण जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किए जाने पर आपको किस प्रकार की अनुभूति हो रही थी?

मैंने शुरू से जो काम किया वह पद्म श्री या पद्म भूषण के लिए नहीं किया। जीवन का ध्येय निश्चित किया, गांव, समाज और देश की सेवा में जीवन व्यापन किया। सेवा का अर्थ है निष्काम कर्म,फल की अपेक्षा ना करते हुए किया हुआ कर्म ही भगवन की पूजा है। इतने अवार्ड्स मिल गए हैं लेकिन आज भी मैं वही उस ही पुराने कमरे में रहता हूँ, ज़मीं पर बैठकर खाना खाता हूँ और ध्येयवादी बनकर गाँव, समाज और देश की सेवा करता हूँ।

आपके विचार से ऐसी कौनसी चीज है जो एक व्यक्ति की कार्यशैली को दृढ़ बनाती हैं? हमने आपके 2011 के लोकपाल बिल सत्याग्रह के बारे में पढ़ा। उस समय आपको कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, मगर इतने दबाव के बाद भी ऐसी कौनसी चीज थी जो आपका मनोबल टूटने से रोक रही थी?

जैसा की मैंने बताया, जीवन का लक्ष्य निश्चित हो, तो मृत्यु पर विजय पा ली जाती है, फिर कितनी भी कठिनाइयां आये मनोबल नहीं टूटता। कई मोड़ ऐसे आये जब खाने के लिए पैसा नहीं होता था, चने खाकर दिन निकाला। समाज की भलाई के लिए मुंबई मंत्रालय में जाता था और लॉज के लिए पैसा नहीं होते थे तो बस स्टैंड पर सोया, कई कठिनाईयां आई पर हताश नहीं हुआ। इसीलिए जब कार्यकर्ता का ध्येय बन जाता है तो वह चुनौतियों से नहीं डरता।

विविधता, समानता और समावेश जैसे तत्वों के विषय में आपका संगठन किस तरह से काम करता हैं? और इन तत्वों को अपनी कार्यशैली में लागू करने के लिए आपने किन-किन चुनौतियों का सामना किया है?

आज बहुत संगठन बन गए है पर इन्हे पैसे के बारे में नहीं सोचना चाहिए, ध्येयवादी बनकर गाँव समाज और देश के लिए काम करो। मैं ये नहीं कहूंगा कि अन्ना हज़ारे की तरह बनो, आपकी भौगोलिक स्थिति कैसी है, सामाजिक स्थिति कैसी है, उसे देखते हुए काम शुरू करो। जैसे हमारे गाँव में, मैंने धीरे-धीरे काम शुरू किय। आज वह गाँव बदल चुका है, बहुत विकास हुआ है, अंडरग्राउंड वाटर लेवल बढ़ गया है और ये सब हुआ डैम बनाने से,तो आप अपनी भौगोलिक और सामाजिक स्थिति देखते हुए काम कीजिये।

आप हमारे लेख के माध्यम से हमारे पाठकों को क्या संदेश देना चाहते हैं?

आपके यूनिवर्सिटी में कई युवक पढ़ रहे है उनके लिए मेरा संदेश यही है कि अन्ना हज़ारे की नक़ल नहीं करना। अपने सामाजिक और मानसिक दायरे को बढ़ाएं। जितना बड़ा आपका सामाजिक परिवार होगा आपके जीवन में उतना ही आनंद होगा और मन प्रफुल्लित रहेगा । दुनिया आज आनंद ढूँढने के लिए भाग रही है और रातों की नींद छोड़ रही है,आनंद बाहर से नहीं मिलता है, हमारे अंदर होता है।

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