अचार विचार

Ambarish Chaudhari
zehn
Published in
1 min readJan 14, 2018

उन दिनों विचार अचार की तरह होते थे
बड़े चाव से बनते और हज़म होते थे

नया सा कुछ हर रोज़ बरनी में डलता था
एक बड़े चम्मच से बार बार घुलता था

वो राज़ की बात जो कि पहचान होती थी
मैके की चिट्ठीयों में बयान होती थी

संभाल के रखो तो साल साल टिकता था
बस गीले चम्मच से पानी फिर सकता था

स्वाद तो हर साल का वैसा ही रहता था
पिछले साल बेहतर था, कोई कहता था

मोहल्ले की नानी का यूँ दिन कटता था
कटोरियों में भर कर जब अचार बँटता थे

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आज कल सभी अचार दुकान में बिकते हैं
आधी भरी शीशियों में अक्सर फिकते हैं

विचारों को भी लोग इस तरह देखते हैं
ऊँगली घुमाकर के सौ जगह फेंकते हैं

अखबारों के जैसे एक नज़र तकते हैं
बिना पढ़े कइयों पे अँगूठे ठोकते हैं

थोड़ा सा चखने से वज़न नहीं बढ़ता है
दिन के सौ “सुप्रभात!” मगर कौन पढ़ता है

किसी के पास कहने को बाकी नहीं रहा
किसी महानुभाव ने जो पहले नहीं कहा

आज भी विचार अचार की तरह होते हैं
हासिल सब को हैं पर किसे हज़म होते हैं

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Ambarish Chaudhari
zehn
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making my way through mist of magic over lanes of logic