मैं लिखता गया
Published in
1 min readSep 2, 2018
पहले मैं कह देता था
जो भी मुंह में आता था
दिल से भले हो या ना हो
सुननेवाला हँस देता था
उम्र होती गई
मैं संभलता गया
अब अक्सर चुप रहता हूँ
सोच समझकर खरचता हूँ
अपने लफ्ज़ और जज़्बात
अपने पास ही रखता हूँ
उलझी सी दुनिया
मैं समझता गया
सुनता गया, देखता गया
पढ़ता गया, भूलता गया
दिल के कोने में रह गई
वो बातें मैं लिखता गया
लोग पढ़ते गए
और मैं लिखता गया
Inspired by a genuinely encouraging prompt “keep writing” from someone who’s been a friend, family and wellwisher for a long long time. Thank you!