[अक्टूबर 2023]
तुम मुझे सपनों में मिलोज़मीन बहुत ऊबड़ — खाबड़ हैढर्रा ढर्रा जीवन है. घड़ी की हथकड़ी है.ऐसे सपने में…
[अप्रैल 2021]
[दिसंबर 2019]
आज़ादी, आज़ादी,आज़ादी बोलो आज़ादीहमें चाहिए आज़ादी — क़ुरान से भी, पुराण से भी!हमें चाहिए…
[अगस्त 2017]
हमारे बुज़ुर्ग गुज़रते हैं तो किताब बन जाते हैंकिसी कोर्स की किताब नहीं!पैसा कमाने की, भौतिकी…
[जून 2014]
[जून 2013]
[ये कविता किसी व्यक्ति विशेष को नहीं, बल्कि उस अनगढ़ उत्साह को संबोधित है जो कोरी…
[नवम्बर 2012]
पिछले नवम्बर में मैंने और एक मित्र राम्या ने जागा, बैंगलोर में एक काव्यात्मक जुगलबंदी…