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मेरे मन की
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ “मेरे मन की”
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कभी धूप -कभी छाँव
कभी धूप -कभी छाँव
जून २००९ में मैंने और रचना ने एक साथ गाया था ये गीत………बहुत मुश्किल आई थी…एक तो गाना आता नहीं था…रिकार्ड करना भी तभी सीखा था..हेडफ़ोन को हम…
अर्चना चावजी
Nov 21, 2016
टुकडों में बँटी मैं
टुकडों में बँटी मैं
बचपन में मैं बँटी हुई थी- शायद दादा- दादी,माँ ,पिता और रिश्तेदारों में। किशोरावस्था में बँटी हुई थी -दादा- दादी, माँ , पिता और दोस्तों…
अर्चना चावजी
Nov 19, 2016
सीख
सीख
ऐसी कोई लाइनें नहीं है मेरे पास , जिनमें हो कुछ अलग या कुछ खास।
अर्चना चावजी
Nov 19, 2016
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आह्वान!!
आह्वान!!
आओ सुनहरे सपनों को बुनें, अच्छाई और सच्चाई को चुनें , बुजुर्गों के अनुभवों को भुनें , अभावों में अपना सर न धुनें , मुश्किलों से लडें…
अर्चना चावजी
Nov 19, 2016
गाँव छोड़ शहर में
गाँव छोड़ शहर में
शहर में बैठकर, गांव के हालात पर- तरस खाता हूँ
अर्चना चावजी
Nov 18, 2016
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