शब्द एक दिन तुम लौट आना
अभी नाराज़गी तुम्हारी जायज़ है
मैंने ऐसे मुँह मोड़ा हमारे रिश्ते से
जैसे तुम मेरे अतिप्रिय नहीं
आज समंदर की लहरों में चलते चलते विचार आया कि जो कभी बहाव हुआ करता था, आज प्रयास बन गया है। जीवन बस बाहरी दबाव के बावजूद अंदरूनी दबाव को मानने की जंग है। इस खींच तान में अक्सर हारती रही हूँ। जब इन बातों की समझ आई तब सामाजिक कार्य से जुड़ गई। शायद जो कलम के माध्यम से करना निर्धारित था वहीं संस्था के नेतृत्व…