कुछ कहना है तुमसे जो. शायद तुम्हे पता है , तो क्यों इकरार नहीं करती हो ?
मेरी आँखों में देख कर एक बार कह दो की तुम मुझसे प्यार नही करती हो
तुम्हारे एक एक बात को लाखों बार पढ़ा है मैंने
इस भीड़ भाड़ की ज़िन्दगी में , कोई तन्हा. ही. रह जाता है
हर मज़ाक को हँस कर कोई हर बार नहीं सुन पाता. है
दो लब्ज़ प्यार के ढूंढने को जो तरसता है उसका भी मन
सुनाई नहीं परती जो तुमको वो गीत अकेला गाता. है
एक बच्चा अपनी माँ से पूछता है की माँ आखिर तू क्यों रोती है ? भोला नादान सा वो बच्चा आखिर क्या जाने की उसकी की माँ की आँखें क्यों बार बार नम हो जाती है ? उसने तो इतना ही समझा है अपनी माँ को, की जब भी वो पाठशाला से कुछ जीत लाया था तो उसकी माँ ने उसे चूमा था। उसके रुठने पर उसे गोद में बिठाकर खिलाया था। तो…
आज भी जब Cartesian Plane के अपने वो दिन याद करता हूँ तो मेरा straight line सा मुँह, opening upwards parabola (a >0 )…