पिंजरा या प्यार- तेरा दर्पण, तू सँभाल
तेरा प्यार बदलकर कब मात्र जीने की वजह बन गया, पता नहीं.
प्यार के दो रूप न्यारे.
अगर प्यार बहुत किया, तो पकड़ कर तुम्हें ही दायरे में बाँध दिया. दूसरा, प्यार इतना किया कि हर दायरा अपनी हस्ती तोड़ तेरी हस्ती में जा मिला.