पहले मैं कह देता थाजो भी मुंह में आता थादिल से भले हो या ना होसुननेवाला हँस देता था
टूथ ब्रश को मुँह में ठूसे हुए मेरी सुबह आँखे मल रही थी
आम्रवृक्ष के असंख्य फलों में से एक फल वो भी था
घर की ओर पैदल निकलता हूँ मैंरास्ते में ही मन बदलता हूँ मैंएक खाली रिक्शा तरस खाता हैजिस में चढ़ के घुटने मलता हूँ मैं
ठंडी हवा में कुछ सहलता हूँ मैंपुरानी यादों से बहलता हूँ मैंएक गड्ढा बीच में आ…
इज़हार-ए-जुनूँ अपना करने नहीं दियाझूठी तसल्ली ने मगर मरने नहीं दिया
उन दिनों विचार अचार की तरह होते थेबड़े चाव से बनते और हज़म होते थे
नया सा कुछ हर रोज़ बरनी में डलता थाएक बड़े चम्मच से बार बार घुलता था
Scrolling along this bottomless page,Like after a heady beverage,I feel devoid of strength or courage,And nothing else, but a helpless rage!
डायरी किती निष्पक्ष असते,सगळे दिवस सारखेचीआज आहे दसरा आणि,दिवाळी दुसऱ्या तारखेची