ऐ मतलबी से लोग , ऐ मतलबी सी दुनियाअपने आप की ख़ोज में, ये मैं कहाँ आया !नक़ाबों के इस मेले में,अपना चेहरा ही छुपा आया;साथ ले चला हूँ, आज का मुखोटा और अतीत का साया;ढूंढने को चला हूँ, भविष्य की माया!
Hey folksI Taresh Pandey really grateful for your love and appreciation that you have given me for ‘ख्वाहिशों के पर’.Here I came with one of mine old poems that I have written in my college time. I’m sharing it with all of you and I hope you guys would like this one also. Please give me your suggestion for ‘ख्वाहिशों के पर’ that you like or do not…
यूँ तो हर किसी के अपने से होते है रिश्ते ; कभी सहयोग से , तो कभी बोझल से होते है रिश्ते !मन के आँगन में कभी उपवन ; तो कभी नागफनी से होते है रिश्ते !जीवन की मृगमरीचिका में कभी धुंधले ; तो कभी हृदय के समीप होते है रिश्ते !
अक्सर लोग बातें तो करते है ; सच को छोड़, झूठ का सहारा लिया करते है !संवेदना विहीन इस जग में ; हमदर्द तलाशा करते है !क्यूँ नहीं खुलती आँखें तब तक; कोई पीड़ा हृदय को विचलित न कर दे !मूंदे हुए नयनों से; इंसानियत ढूंढा करते है !यूँ ही अक्सर लोग बातें तो करते है !!
मन
मेरे मन का सागर, जैसे तरस रहा है शब्दों को !व्यक्त न कर पाया अभिव्यक्ति , जो तरस रही है भावों को;कभी कोई विचार कोंध उठता है, ह्रदय के किसी कोने में !जैसे सूर्य किरण कोई, भेदन करे घनघोर अंधियारे मेघों को;रातों में न नींद मिले, दिन में कभी न सुकून मिले!तपते हुए मरुस्थल को , वर्षा की न बूँद मिले;कुछ ऐसी ही दशा मेरी भी…