शायद मेरी ही ग़लती थीहर बार तुम दिल तोड़ जाते थेऔर हर बार मैं यूँही जोड़ लेती थीवादे तोड़ जाना,ये तो आदत थी…
वो पहली मुलाक़ातबातें हो चूकी थीं अबतक बहुतलेकिन मिलें नहीं थे कभीफिर एक रातअचानक से मिलने का ज़िक्र हुआदो नो ही मिलना चाहते…