सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।
तुम सुख या दु:ख, हानि या लाभ, विजय या पराजय का विचार किये बिना युद्ध (कर्म) के लिये युद्ध (कर्म) करो । ऐसा करने पर तुम सभी पापों से बच जाओगे ।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड की जा सकती है, न अग्नि द्वारा जलायी जा सकती है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखायी जा सकती है।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण कर लेता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीरों को त्याग कर नवीन भौतिक शरीर धारण करती है।
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ । समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ।।
हे पुरुषश्रेष्ठ ! जो पुरुष सुख तथा दुःख में विचलित नहीं होता और इन दोनों में समभाव रखता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है ।
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः । आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।
हे कुन्तीपुत्र ! सुख तथा दुःख का क्षणिक उदय और समय के क्रम में उनका अन्तर्धान होना सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओं के आने व जाने के समान है ।
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः । न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ।।
ऐसा कभी नही हुआ है कि, मैं न रहा हु, या तुम न रहे हो, अथवा ये समस्त राजा न रहे हों; और न ऐसा है कि भविष्य में हम लोग नहीं रहेंगें।
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे । गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ।।
तुम विद्वत्ता पूर्ण वचन कहते हुऐ, उनके लिए शोक कर रहे हो, जो शोक करने योग्य नही हैं । जो विद्वान् होते हैं, वे न तो जीवित के लिये, न ही मृत के लिये शोक करते हैं ।