ग़ज़ल का मुहाफ़िज़: मजरूह सुल्तानपुरी
तरक़्क़ी पसंद दौर में जब शायरी एक नयी शक़्ल ले रही थी (ग़ज़ल की तक़रीबन मुख़ालिफ़त कर रही थी), और क्लास्सिकल सरमाये को नज़र-अंदाज़…
हैदराबाद में मख़दूम की प्रसिद्धि का आलम ये था कि डा० ज़ीनत साजिदा जो उस्मानिया…
वो रोशनियों से डरता था, दस साल…
ईहाम लफ़्ज़ वह्म से बना है। ईहाम का माना है वह्म या फ़रेब में रखना। मीर तक़ी मीर इसे इस तरह से बताते हैं कि…