लघु कविताएं-----------------
धरती के गर्भ मेंअकूत वेदनाओं का मवादभरा है लावा बनकर।आज भी इसकी पीड़ाएँमौजूद हैं धरती परपहाड़ों के रूप में।-----------------
पोथली भर यादें, बूंदो जितनी रंजिशें,सलीखे से संभाले हुए कुछ रिश्ते,मुस्कराहट के बिखरे हुए मोती,आँखों में कुछ ख्वाब,बस इतना ही है मेरे पास…
मैंने सोने को पत्थर होते देखा है
मैंने देखा है उन्हें जाते, जो मुझे खोने से डरते थेउनके जाने पर मैंने खुद को हर दिन थोड़ा मरते देखा है
मैंने उन क़दमों को घरों से उठते देखा हैउन हाथों का हाथ छुड़ाकर जिनकी उंगली पकड़ कर चलना सीखा थामैंने बूढ़ी बेबस आंखो में लाचारी का सैलाब…
खिड़कियों की खिलखिलाहटकमरों की किस्सागोईगलियारों की गलबहियाँबरामदे का बातूनीपनदर औ' दीवार का दीवानापनपर्दों का प्राकट्य प्रेम…
आकर झाँक लो अब तुम इस दिल में,पसरा है सूनापन आज भी महफ़िल में।
अश्रुपूर्ण नैनो से देती मां मैं तुझे विदाई तेरे बिन इस रिक्त जगह की ना होगी भरपाई, रस्मों में बंध तूने मुझको दूर देश है ब्याहा पास…
भावों और शब्दों का मिलन शब्दों का सुंदर संकलन पाठक द्वारा हृदय से अनुमोदन आलोचक का न्यायिक आकलन कवि का सात्विक का आचरण |
शब्द भाव की नहीं है मंदी मुक्तक दोहे में है सन्धि, सिर पर रख हिंदी की बिंदी प्रस्तुत है मेरी तुकबंदी |