आज यह शहर अलग सा है
ना अपना, ना पराया
पता है लेकिन घर नहीं
सिफ़र से शुरू एक सफ़र सही
घर के सन्नाटे मे,
तेरी यादों की पहल है |
इस एक तरफ़ा प्यार में ,
सिर्फ मेरी पहल है |
तिनका हूँ, तलवार नहीं |
माझी हूँ, मझधार नहीं |
कुछ ख्याल अटके है मन में,हँसना,रोना जैसे औजार है इसके ,कभी टिमटिमाती रहती हैं ख्वाबो की बत्तियाँ,और कभी झोले में है कुछ नहीं मिलता, तो यु ही…
(1)न देखते बुद्ध अगर किसीबीमार को, क्या होता?न देखते बुद्ध अगर किसी कीजरावस्था को, क्या होता?न देखते बुद्ध…