चाँदनी थी धवल, शीतल थी वात
शिथिल से उस क्षण में मन कर रहा था संवाद
धूल मिट्टी से भरी पगडंडियाँ अब नहीं हैं
भीगे खस से ढंकी खिड़कियाँ अब नहीं हैं
ज़माने पहले एक नज़्म नेपंख पसारे थेहिचकिचाते हुएमेरी मेज़ पर रखे कागज़ के पन्ने सेसौंधी सी महकी थीधुंआ बन के हलके सेछाई थी फिज़ाओं मेंतब वक़्त कुछ और थातुम होते थे तसव्वुर में तबउसी रोज़ सुबह तुमनेआँगन में सूखते गेहूँ की चादर परउजली सी धूप मेंकुछ गेहूँ उठा कर मेरी जुल्फों में भरे थेऔर सुनहरे दानों…
आज सवेरे से ही अनमनी सी थी वो
कभी खिड़की पर जाती
कभी वापस आ कर
मेज़ पर पड़ी किताब को
एक बार और पोंछती थी पल्लू से
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कि ये ज़मीन ये तारे ये झिलमिल बारात उनकी
ये चाँद का गहना जो रात ने पहना है
ये हवाओं की अठखेलियाँ जो लुभाती है दिल
मेरी नज्मों में छुपे बैठे हो कब से रात के साये में लिपटे हुए से छुपा छुपी के इस खेल में तलाशती रहती हूँ मैं कभी तुम्हे, कभी अपने आँचल के छोर को
वो कहते हैं रोम एक रात में नहीं बना
फिर एक रात में ध्वस्त कैसे हो जाती हैं वर्षों, युगों की इमारतें एक ठोकर में कैसेबिखर जाती हैंएक एक कर संजोयी सीपियाँक़तरा क़तरा स्वप्न का भीचकनाचूर होते देखा हैरात के कुछ लम्हों मेंतुम भी तो चले गए थेएक रात में हीफिर कभी न लौटने को…
ख़ुदा ढूँढने निकले थेखुद से मुलाक़ात हो गई तलाश वहीं पर कुछ मुक़म्मल सी लगने लगी मोमबत्ती की रोशनी
जब दिल के कोनों पर पड़ी
आज दिल में आता है लिखूं
तब तक जब तक सूख न जाएँ
स्याही या फिर आंसूं
या मिल न जाए जवाब
उस सवाल का जो दिल ने
आघात नहीं कह सकती इसकोयह जो पीड़ा है, आकस्मक नहीं हैअसहनीय भी नहीं कहूँगी क्योंकिजीवित हूँ इसे ह्रदय में लिए अब भी
एक शांत सा सागर है येलहरों का शोर तो है किन्तुन हलचल, न तटस्थ होने का प्रयासआकाश बन…
शब्द एक दिन तुम लौट आना
अभी नाराज़गी तुम्हारी जायज़ है
मैंने ऐसे मुँह मोड़ा हमारे रिश्ते से
जैसे तुम मेरे अतिप्रिय नहीं