सालगिरह के तोहफ़े में कल एक सुन्दर कापी मिली।
Strand of her hair lay curled …
यत्र तत्र और सर्वत्र, चित्र हैं बड़ा विचित्र
पत्र के ये सारे मित्रआठ दस नहीं सहस्त्र
शरीर के हैं भूखे नेत्रकैसे हो इनका चरित्र
डायरी किती निष्पक्ष असते,सगळे दिवस सारखेचीआज आहे दसरा आणि,दिवाळी दुसऱ्या तारखेची
मशहूर रहें हैं सालों से तेरे हुस्नो-अंदाज़ बहुतपर ना सोचा था हम ने, कर दोगी हमें हैरान बहुत
समय का पहिया बूढ़ा हो कर रुक गया।और झरोके की रोशनी से धूल के नन्हे ज़र्रे भी।
I hated it. I knew instantly.
And I haven’t been prouder …of the speed of my thought, of my decisiveness, my firmness…
नैना, मेरे ग़मों के हैं गवाहनैना, सितम से तेरे बेखबर हैं यूँ
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