ग़ज़ल का मुहाफ़िज़: मजरूह सुल्तानपुरी
तरक़्क़ी पसंद दौर में जब शायरी एक नयी शक़्ल ले रही थी (ग़ज़ल की तक़रीबन मुख़ालिफ़त कर रही थी), और क्लास्सिकल सरमाये को नज़र-अंदाज़…