कागज़ पर तुम्हारा नाम लिखूं
मिल तो लो
वाकिफ़ करवाउंगी
एक जान तू है,
एक साँस मैं हूँ ,
पलकों में भर लिया तुम्हें
दोने में पानी की तरह,
सूखी, उजड़ी, बेरंग ज़िन्दगी,लड़खड़ाती, अनमनी सी, मगर चलती है,क्यूँ नहीं थमती है? क्यूँ नहीं सूख के झड़ जाती है?क्यूँ नहीं धूल में जा मिलती…